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________________ बनारसीविलासः विद्याको विसनधरै परतिय संग हरें, दुर्जनकी संगतिसों बैठे मुख मोरकै ।। त लोकनिन्ध काज पूर्जे देव जिनराज, ___ करें जे करन थिर उमंग बहोरकै । तई जीव सुरखी होय तेई मोख मुखी होंय, तेई होंहि परम करम फन्द नोरके ॥ १ ॥ पनिन्दा त्याग कर मनमें वैगग धर, ___ क्रोध मान माया लोभ चारों परिहा रे ॥ हिरदम तोप गहु मम नामों मीगे रहु, ___घरमको भेद लहु ग्वदमें न पर रे ॥ कम्मको वंश ग्वाय मुकतिको पन्थ जोय, मुनिको बीजयीय दुर्गानमा डर रे । अंग् नर एसो होहि बार बार कहूं तोहि, नहि नो मिधार → निगोद नंगे घर रे ॥ २॥ ३. मात्रा संवैया छन्द । .. आलम त्याग जाग नर चेतन. बर संभार मत करहु विलंब । हा न मम्ब लवलेश जगनहि. निब विरष लगै न अंब ॥ नात नं अतर विपक्ष हर. कर विलक्ष निज अक्षकदंब । गह गुन ज्ञान बैट चारितरथ, देहु मोष मग सन्मुख बंब ॥३॥ मालिनी। 3 अमजद जितदेवाचार्यपहोदयादि. घुमणिविजयसिंहाचार्यपादारविन्दे । SARKakkukkukri.kustitutatt.tattat.tt.t.tt,t.tt.t.tat.tattatokuterdrinkeel
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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