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________________ बनारसीविलासः स्मरक्रोधाद्यारीन्दलय कलय प्राणिषु दयां जिनोतं सिद्धान्तं शृणु वृणु जवान्मुक्तिकमलाम् ॥ हरिगीता छन्द | जो रे साथ त्रिकाल सुमरण, जाम जगयश विस्तरे । जो सुने परमानहि सुरुचिमों, नीत माग्ग पग धेरै ॥ जो निरख दीन दया प्रभु, कामक्रोधादिक रे । जो धन सप्तसुत खरचे. ताहि शिवपति बेरे ॥ ९४ ॥ शार्दूलविक्रीडित | कृत्वाहपदपूजनं यतिजनं नत्वा विदित्वागमं हित्वा धर्मकर्मठधियां पात्रेषु दत्वा धनम् । गत्वा पद्धतिमुत्तमक्रमजुगं जित्वान्नराविजं स्मृत्वा पञ्चनमस्त्रियां कुरु करोडस्थमिटं सुखम् ॥ ४९ वस्तु छन् । देव पूजहि देव पूजहिं नहि गुरु सेव | परमागमरुचि धहि नजहि दुष्टगत तनक्षण | गुणि संगति आदर करहि त्याग दुमन भक्षण || देहि सुपात्रहि दान नित जैसे पंचनवकार | ये करनी जे आचरहिं ने पांव भवपार || ९५ ॥ हारिणी । प्रसरति यथा कीर्तिर्दिक्षु क्षपाकरसोदराभ्युदयजननी यानि स्फीति यथा गुणसन्ततिः । कलयति यथा वृद्धि धर्मः कुकर्महतिक्षमः कुशलसुलभ न्याय्ये कार्य तथा पथि वर्तनम् ॥ ९९६ ॥
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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