SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 314
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८ जैनग्रन्थरत्नाकरे घनाक्षरी छन्द । जाकों भोग भाव दीस कार नागको फन, गजको ममाज दीग्य जैसो रजकोष है । जाको परवार को बढाव घगवध मृझ. विप उन्ब मौजको विचार विषपोप है ।। लमै यो विमति ज्या भममिको विभूति कह.. ___ बनता विदाममै विलोके दृ दोष है। सो जान त्याग यह महिमा विगगताकी. नाहीको वैगग मही ताक दिग मोप है ॥ २ ॥ इन अधिकार समाप्रम अथ उपदेश गाथा । उपेन्द्रवत्रा। जिनेन्द्र प्रजा गुरुपर्युपास्तिः सत्त्यानुकम्पा शुभपात्रदानम। गुणानुगगः श्रुतिगगमम्य नृजन्मवृक्षम्य फलान्यमुनि ? मत्तगयन्द। के परमेश्वरकी अाचा विधि. मो गुरुको उपमन की। , दीन बिलोक दया याग्यि चिन, प्रामुक दान पनाह दी। ।। । गाहक हो गुनको गहिये, मचिों जिन आगमको रस पीन। य करनी करिय प्रटमै यम. यो जगम नरमीफल लीने ॥ ३॥ : निर्वागणी । त्रिसंध्यं देवाची विरचय च यं प्रापय यशः श्रियः पात्र वापं जनय नयमांग नय मनः । ----- -..."":' +--+-+-+-+-+-+-+-+ 4
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy