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________________ जैनमन्थरत्नाकरे करिखा छन्द । मान सब उचित आचार भंजन करे; पवन संचार जिम घन विडहि | मान आदर तनय विनय लोपै सकल; भुजग विष भीर जिम मरन मंडहि ॥ मानके उदित जगमाहि विनसै सुया. कुपित मातंग जिम कुमुद खंडहि । मानकी रीति विपरीति करवृति जिम; अधमकी प्रीति नर नीत छंडहि ।। ५१ ।। वसन्ततिलका | मुष्णाति यः कृतसमस्त समीहितार्थ संजीवनं विनयजीवितमङ्गभाजाम् । जात्यादिमान विषजं विषमं विकारं तं मार्दवामृतरसेन नयस्व शान्तिम् ॥ ५२ ॥ ( मात्रा १५) चौपाई | मान विषम विपतन संचरे । विनय विनाश वॉछितहरे ॥ कोमल गुन अम्रत संजोग । विनशै मान विषम विपरोग ॥ ५२ ॥ मायाधिकार. २६ मालिनी । कुशलजननवन्ध्यां सत्यसूर्यास्त संध्यां कुगतियुवतिमालां मोहमातङ्गशालाम् । ******* XXX.
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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