SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .............................................................tial जैनग्रन्थरत्नाकरे ॐ २२ vot.totatutet.tairtel-t.tt.tut.tt.ttesetat t..t..t.tt.tut.t.t.ttitut.tt.ttatokutekatt.tt.it प्रशमको अहित अधीरजको बाल हितः __महामोहराजाकी प्रसिद्ध राजधानी है । भ्रमको निधान दुरध्यानको विलासवनः विपतको थान अभिमानकी निशानी ह ॥ दुरितको खेत रोग शोग उतपति हेत; ___कलहनिकेत दुरगतिको निदानी है । ऐसो परिग्रह भोग सवनको त्याग जोग; ___आतम गवेपीलोग याही भांति जानी है ॥ ४३ ॥ वह्विस्तृप्यति नेन्धनैरिह यथा नाम्भोभिगम्भोनिधिम स्तहल्लोभघनो धनैरपि धनैर्जन्तुर्न सतुष्यति । न त्वेवं मनुने विमुच्य विभवं निःशपमन्यं भवं यात्यान्मा तदहं मुधैव विदधाम्यनांसि भूयांसि किम् ।। ___पटपद । * ज्यों नहि अग्नि अघाय; पाय ईधन अनेक विधि । ज्यों सरिता घन नीर; नृपति नहि होय नीरनिधि । त्यो असंग्व धन बढत; मूढ संतोप न मानहि । पाप करत नहि डरत; वंध कारन मन आनहि ॥ परतछ विलोक जम्मन मरन; अथिर रुप संमारक्रम । समुझ न आप पर ताप गुन; प्रगट बनारसि मोह भ्रम ॥१४॥ ___ क्रोधाधिकार. यो मित्रं मधुनो विकारकरणं संत्राससंपादने - सर्पस्य प्रतिबिम्बमगदहन समार्चिषः सोदरः । * ལོ ཏོ 'ལོ ས ས ས ས ས ས ས པ ས * ''' ས ས ས ས * PHerekxtux..TOTatut.x.t..intri..T..I.ink....T.TA..X.TAFT-intri.int.retart...Lttrie
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy