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________________ Sekcuttttttttt.tttt. t Pt.ttitutitutet.tt.tot.tt.titutet.tituttatutetitutetetituttituttotottotokuttitutitute Potato katrikakai tattitut.ki.ket.inkari.ki.kuta २० जैनग्रन्थरत्नाकरे तासु विवेक बढे घट अंतर; सो सुरके शिवके मुख माले। ताकि सुकीरति होय तिहूँ जग; जो नर शील अखंडित पालै॥३०॥ ॐ तोयत्यग्निरपि सजत्यहिरपि व्याघोऽपि सारङ्गति ____ व्यालोऽप्यश्चति पर्वतोऽप्युपलति श्वेडोऽपि पीयूषति। विघ्नोऽप्युत्सवति प्रियत्यरिरपि क्रीडातडागत्यपांनाथोऽपि स्वगृहत्यटव्यपि नृणां शीलप्रभावाडुवम् ४० षट्पद। अग्नि नीरसम होय; मालसम होय भुजंगम । नाहर मृगसम होय; कुटिल गज होय तुरंगम ॥ विष पियूषसम होय; शिखरपाषान खंडमित । विघन उलट आनंद; होय रिपुपलट होयहित ॥ लीलातलावसम उदधिजल; गृहसमान अटवी विकट । इहिविधि अनेक दुख होहिं सुख; शीलवंत नरके निकट ॥४०॥ परिग्रहाधिकार. कालुप्यं जनयन् जडस्य रचयन्धर्मद्रमोन्मूलनं क्लिननीतिकृपाक्षमाकमलिनी लोभाम्बुधिं वर्धयन् । मर्यादातटमुट्टजञ्छुभमनोहंसप्रवासं दिशकि न क्लेशकरः परिग्रहनदीपूरः प्रवृद्धिं गतः ॥ ४१ ॥ ३१ मात्रा सवैया। में अंतर मलिन होय निज जीवन; विनसे धमतरोवरमूल । किल्सै दयानीतिनलिनीवन; धरै लोभ सागर तनथूल ॥ xt.tttt.tt.tthiti...........Tuttitutt.tt.tta
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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