SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 278
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ vt.tt.t. tet.tat.............tatt....................tatta ११२ जैनग्रन्थरत्नाकरे ताको आय मिलै मुखसंपति, कीरति रहै तिहूं जग छाय। जिनसों प्रीत बढे ताके घट, दिन दिन धर्मबुद्धि अधिकाय ॥ छिनछिन ताहि लखै शिवसुन्दर, सुरगसंपदा मिलै मुभाय । बानारसि गुनरास संघकी, जो नर भगति करै मनलाय॥२३॥ यद्भक्तेः फलमर्हदादिपदवीमुख्यं कृपेः सस्यव चक्रित्वत्रिदशेन्द्रतादि तृणवत्प्रासङ्गिकं गीयते । शक्ति यन्महिमस्तुतौ न दधते वाचोऽपि वाचस्पतेः संघः सोऽघहरः पुनातु चरणन्यालैः सतां मन्दिरम् ॥ जाके भगत मुकतिपदपावत, इन्द्रादिक पद गिनत न कोय || ज्यों कृषि करत धानफल उपजत, सहज पयार घाम भुस होय॥ जाके गुन जस जंपनकारन, सुरगुरु थकित होत मदखोय । सो श्रीसंव पुनीत बनारसि, दुरित हरन बिचरन भविलोय २४ अहिंसा अधिकार । क्रीडाभूः सुकृतस्य दुष्कृतरजःसंहारवात्या भयो* दन्वन्नौर्व्यसनाग्निमेघपटली संकेतदृती श्रियाम् । निःश्रेणित्रिदिवौकसः प्रियसखी मुक्तः कुगत्यर्गला सत्त्वेषु क्रियतां कृपैव भवतु क्लेशैरशेषः परैः ॥ २५ ॥ - घनाक्षरी। सुक्रतकी खान इन्द्र पुरीकी नसैनी जान' पापरजखंडनको, पौनरासि पेखिये । भवदुखपावकबुझायवेको मेघ माला, कमला मिलायवेको दूती ज्यों विशेखिये ॥ HTTAR FREE Frotaterat.kok...................................... ... .......................tei.tatutetni.ke Matatatatatatatatatatatatatakrintitetute tataratatet attuttorahaetate tatetetutitututet
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy