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________________ tatatatatatatatatet tetetatt tatatatatat tetatatatatata जैनग्रन्थरत्नाकरे Wetterstatntatrictatuunteteluketelate rudimentaltetetelex.betrbetakrutetrtetattetutetatik ताको सुगम नरक दुख संकट; अगमपथ पदवी निर्वान । जिनमतवचन दयारसगर्भित; जे न मुनत सिद्धंतबखान १८ पीयूषं विषवजलं ज्वलनवत्तेजस्तमःस्तोमव मित्रं शात्रववत्नजं भुजगवञ्चिन्तामणिं लोष्टवत् । ज्योत्स्ना ग्रीष्मजधर्मवन्स मनुते कारुण्यपण्यापणं जैनेन्द्र मतमन्यदर्शनसमं यो दुर्मतिर्मन्यते ॥१९॥ पट्पद। अमृतको विष कहै; नीरको पावक मानहिं । तेज तिमरसम गिनहिं: मित्रकों शत्रु बग्वानहि ।। पहुपमाल कहिं नाग; रतन पत्थर सम तुलहिं । चंद्रकिरण आतप स्वरूप; इहि भांत जु भुल्लहि ।। ॐ करुणानिधान अमलानगुनः प्रघट बनारसि जैनमत । परमत समान जो मनधरत; सो अजान मूरख अपत ॥ १९॥ धर्म जागरयत्ययं विघटयत्युत्थापयत्युत्पथं ॐ भिन्ते मत्सरमुच्छिनत्ति कुनयं मनाति मिथ्यामतिम् । वैराग्यं वितनोति पुष्यति कृपां मुष्णाति तृष्णां च यसे तज्जैनं मतमर्चति प्रथयति ध्यायत्यधीते कृती ॥२०॥ मरहटा छन्द। शुभ धर्म विकाशै, पापविनाशै; कुपथउथप्पनहार । मिथ्यामतखंडे, कुनयविहंडै; मंडै दया अपार ।। तृष्णामदमारे, राग विडारै; यह जिनआगमसार । जो पूलै ध्या३, पढ़ें पढा; सो जगमाहिं उदार ॥२०॥ tetrtetutattarintatute toit tristus init, I kolutocrttunut kininiintatuttetrtate
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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