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________________ । ( ६२ ) रक्खा, वहीं उसको खाना खिलाता रहा और पानी देता रहा। वह उसे बड़ा प्यार करने लगा। इस प्रकार वह दुर्बल और विवश जनोंको प्यार करने लगा और प्रबल जनोंकी ओर उसका द्वेष जाता रहा। अब वह अपने हृदय और अपने हाथसे अपने भाइयोंका बुरा न चाहकर, भला चाहने लगा । वह अतीव वश्य और आज्ञाकारी हो गया । सब उसके इस परिवर्तनपर आश्चर्य करने लगे। उसका रूपरंग भी बदल गया, वह हंसमुख हो गया, अब उसकी आकृति भयानक नहीं रही, उसके मुख और आंखोंसे करुणा और दया बरसने लगी। अब वह अपराधी नहीं रहा और उस के हृदयके भाव शुद्ध और पवित्र हो गए । जब वह कारागारसे छूटा तब उस चूहीको अपने साथ ले गया। (ठ) सहानुभूति और निष्काम परोपकारमें ही सुख है। कहते हैं कि जब युधिष्ठिर स्वर्गमें आए, तो विस्मित होकर इधर उधर देखने लगे। पर वे प्यारी आकृतियां जो संसारमें उनकी मित्र थीं अर्थात् नकुल, सहदेव, भीम, अर्जुन आदि कोई भी दिखाई नहीं दिया। इतनेमें दुर्योधन दिखाई पड़ा । युधिष्ठिरको आश्चर्य हुआ कि जिस मनुप्यके कारण महाभारतमें बहुतसे लोग मारे गए, और सारा भारत नष्ट हो गया और जो राज्येक बिगाड़ने, कुटुम्बियोंके मरवा डालने और करोड़ों शूरवीर राजपूतोंके सिर कटवानेका मूल कारण हुआ था, वह यहां भी उपस्थित है । यह देखकर राजाने घृणासे अपनी दृष्टि उस ओरसे फेर ली और कहा “मैं वहां जाना चाहता हूं जहां अर्जुना. दिक हैं" । नारद ऋषिने मुसकराकर कहा,-"हे राजन् ! यह
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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