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________________ ( ५६ ) हमारी बाह्य घटना न बदले, तो फिर हमें किस प्रकार विदित हो कि हम इस उच्चपदको पहुंच गए हैं ? यदि हम दशा परिवर्तनको अनुभव न करें, तो फिर कौनसी वस्तु है जिससे हमारी परीक्षा हो सके कि हम सारी अवस्थाओं में शान्त संतुष्ट रहते हैं । आलस्य, उदासीनता, हर्ष, विषयासक्ति आदिमें संतोष नहीं है ये सब असन्तोषके कारण हैं। ये झूठे सिद्ध हैं, जो प्रतिज्ञा कुछ करते हैं और देते कुछ और हैं । जो मनुष्य यह सोचते हैं कि जो मनकी भावना हमने ऊपर वर्णन की है संतोष उस से कोई अलग वस्तु है, उससे वे धोखमें पड़े हुए हैं और मानो मूर्खता के मन्दिर में विश्राम कर रहे हैं और कभी न कभी अपनी भूलको जान लेंगे । पुण्य, उपकार वा भलाईही में सब प्रकारकी शक्ति है, यदि इस मतमें दृढ विश्वास रक्खा जाय तो इससे परम ज्ञान प्राप्त होगा और मूर्खता जाती रहेगी । यह कहावत प्रसिद्ध है कि “संतोषी नित्य सुखी ।" जिन लोगोंका यह विश्वास है कि सारी वस्तुएँ मिल कर भलेके लिए काम कर रही हैं, उन्हें सर्वत्र भलाई ही भलाई दीख पडती है । विषमें भी अमृत की धाराएं मिली हुई भासती हैं और बादलोंमें भी चाँदीकी सी श्वेत झलक दिखाई देती है । यह लोग सदा शुभचिन्तक हैं । सुना है कि कुछ लोग ऐसे भी हैं कि जब तक वे असन्तुष्ट न हों तब तक वे प्रसन्न नहीं होते । यदि ऐसे मनुष्य हैं तो उन्हें अपने आपसे असन्तुष्ट रहना चाहिए न कि अपनी बाह्य अवका वा घटनाओंसे । कौन जाने कि यदि वह अपने आप - /
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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