SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छह प्रकारका पूजन भी वर्णन किया है। परन्तु संक्षेपसे पूजनके, नित्य और नैमित्तिक, ऐसे दो भेद हैं। अन्य समस्त भेदोंका इन्हीं में अन्तभांव है । अष्टान्हिक आदिक चार प्रकारका पूजन नैमित्तिक पूजन कहलाता है और नामादिक छह प्रकारके पूजनोंमें कुछ नित्य नैमित्तिक और कुछ दोनों प्रकारके होते हैं । प्रतिष्ठा भी नैमित्तिक पूजनका ही एक प्रधान भेद है । तथापि नैमित्तिक पूजनोंमें बहुतसे ऐसे भी भेद हैं जिनमें पूजनकी विधि प्रायः नित्यपूजनके ही समान होती है और दोनोंके पूजकमें "गर्भादि पंचकल्याणमर्हता यद्दिनेऽभवत् । तथा नन्दीश्वरे रत्नत्रयपर्वणि चाऽर्चनम् ॥ स्नपनं क्रियते नाना रसैरिक्षुघृतादिभिः । तत्र गीतादिमागल्यं कालपूजा भवदियम् ॥" -धर्मसंग्रहश्रा० । अर्थात्-जिन तिथियोमे अरहंतोके गर्भ, जन्मादिक कल्याणक हुए है, उनमें तथा नंदीश्वर, दशलक्षण और रत्नत्रयादिक पोंमें जिनेंद्रदेवका पूजन, इक्षुरस आर दुग्ध-घृतादिकसे अभिषेक तथा गीत, नृत्य और जागरणादि मांगलिक कार्य करनेको कालपूजन कहते है। ___"यदनन्तचतुष्काचैविधाय गुणकीर्तनम् । त्रिकालं क्रियते देववन्दना भावपूजनम् ॥ परमेष्ठिपदैर्जापः क्रियते यत्स्वशक्ति तः। अथवाऽहंद्गुणस्तोत्रं साप्यर्चा भावपूर्विका ॥ पिडस्थं च पदस्थं च रूपस्थं रूपवर्जितम् । ध्यायते यत्र तद्विद्धि भावार्चनमनुत्तरम् ॥" -धर्मसंग्रहश्रा। अर्थात्-जिनेंद्र के अनंत दर्शन, अनंत ज्ञान, अनंत सुख और अनंत वीर्यादि गुणोकी भक्तिपूर्वक स्तुति करके जो त्रिकाल देववन्दना की जाती है, उसको तथा शक्तिपूर्वक पंच परमेष्टिके जाप वा स्तवनको और पिंडस्थ, पदस्थ, रूपस्थ और रूपातीत ध्यानको भावपूजन कहते है । पिडस्थादिक ध्यानोंका स्वरूप ज्ञानार्णवादिक ग्रंथोंमें विस्तारके साथ वर्णन किया है, वहांसे जानना चाहिये।
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy