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________________ (२१) त्याग करना होगा और फिर तुम्हें उसके बदलेमें आध्यात्मिक सुख मिल सकता है । देखो जबतक कृपण अपना रुपया हाथसे नहीं छोड़ता उसे कोई सांसारिक सुख प्राप्त नहीं हो सका , धन दौलत होनेपर भी सदा कष्ट भोगता रहता है । इसी प्रकार जो मनुष्य भोग विलास नहीं छोड़ना और जो क्रोध, निर्दयता, विषयभोग, अभिमान, अहंकार आदिमें आसक्त होकर इनहीमें निमग्न रहता है वह मानो आध्यात्मिक कृपण है, उसे कोई आत्मसम्बन्धी सुख प्राप्त नहीं हो सकता और वह सांसारिक आनन्दका धन होनेपर भी सदा आत्मसम्बन्धी दुःख भोगता रहता है । ____ जो मनुप्य सांसारिक कामोमें चतुर है वह न तो भीख मांगता है, न चोरी करता है. वरञ्च परिश्रम करता है और प्रत्येक वस्तुको मोल देकर लेता है और संसार उसकी इस ऋजुताके लिए उसका आदर सत्कार करता है । जो मनुष्य आध्यात्मिक रीतिम चतुर है वह भी न तो भीग्व मागता है न चोरी करता है, वरञ्च अपने भीनरी संसार में परिश्रम करता रहता है और अपनी आध्यात्मिक वस्तुओंको त्यागद्वारा मोल लेता रहता है । सारा संसार इसकी धर्मपरायणता और न्यायके कारण इमका सन्मान करता है। सामारिक वस्तुओंमें यह एक और नियम है कि जो मनुष्य दृमरेके लिए कुछ कर्म वा सेवा करता है उसे जो वेतन ठहर गया है उसपर संतुष्ट रहना पड़ता हैं । यदि सप्ताहभर काम करने और अपना चेतन लेनक अनन्तर वह अपने स्वामीसे कुछ और अधिक रुपया मागे और यह कहे कि यद्यपि मेरा अधिक मांगना ठीक नहीं है और न भै वस्तुतः इसका अधिकारी हूं तथापि मैं आपसे कुछ अधिक लेने की आशा रखता हूं, तो उसे अधिक तो कुछ
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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