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________________ ( २० ) इस प्रकार अपनी रोज़ी कमाते हैं । परन्तु वे आध्यात्मिक वस्तुओंमें इस नियमके व्यापारको नहीं मानते । उनका विचार है कि भौतिक वस्तुओं की प्राप्तिके लिए तो कमाना अवश्य है और जो कोई संसार में इस नियमके विरुद्ध करेगा, वह भूखा नंगा फिरेगा। उनके मतमें आध्यात्मिक वस्तुओंके लिए भीख मांगना उचित है। क्योंकि उनका विचार है कि आध्यात्मिक वस्तुओंकी प्राप्तिके लिए परिश्रम करने या उनके लेनेके लिए अपने आपको योग्य बनानेकी आवश्यकता नहीं अर्थात् ये आध्यात्मिक श्रेय आप ही आप प्राप्त हो जाएगे । इसका फल यह है कि बहुतमे लोग अध्यात्मविद्यामे रहित होकर यों ही भीग्ब मांगते फिरते हैं, दुःग्व और कष्ट सहते है और अध्यात्मसम्बन्धी आनन्द ज्ञान और शान्ति उनको नहीं मिलती। ___ यदि तुम्हें किसी सांसारिक वस्तु भोजन बम्बादिकी आवश्यकता होती है तो तुम बेचनेवालसे भीग्व नहीं मांगतेः उसमें इनके दाम पूछते हो और अपने पासमे दाम दकर वस्तु ले लेते हो । मूल्य देकर ही वस्तुका लेना ठीक समझते हो और इसमे भिन्न कुछ करना नहीं चाहते । यही नियम आध्यात्मिक वस्तुओंमें भी प्रचलिन है । इसी प्रकार यदि तुम्हें किसी आध्यात्मिक वस्तु आनन्द विश्वास या शान्तिकी आवश्यकता हो तो उसके बदलेमें कुछ देकर ही उसे लेना चाहिये अर्थात् उसके दाम दे देने चाहियें । जैसे तुम्हें किसी सांसारिक वस्नुके लिए अपना भौतिक धन देना पड़ता है, इसी प्रकार आध्यात्मिक वस्तुके लिए भी कोई न कोई अमूर्त वस्तु अवश्य दान करनी होगी । तुम्हें पहले किसी बुरी कामना व्यसन विषयभोग अभिमान या लालसाका
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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