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________________ ( १२ ) याद रक्खो कि छोटेसे छोटे काम के लिए भी तुम्हें अनुग्रहीत होना चाहिये । २. कभी २ तुम वृथा अभिमान के मारे अपने आपमें फूले नहीं समाते और मनमें यह समझने लगते हो कि हमें औरों से अधिक ज्ञान है; पर तुम्हें यह जानना चाहिये कि शून्य थैला सीधा नहीं खड़ा हो सकता । औरोंको दोष लगाने से पहले अपने ही दोषोंपर दृष्टि डालो | बुद्धिमान् और नम्र बनो । इस निम्नलिखित लोकके अनुसार चलो विद्या ददाति विनयं विनय याति पात्रताम् । पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्म ततः सुखम् ॥ ३. अवधान और वश्यता, अर्थात् ध्यान और नम्रता विद्याप्राप्ति के लिए आवश्यक हैं । यदि श्रेणिमें कोई बात सिखलाई जाए और तुम पाठको सुनो ही नहीं वरश्व अपनी श्रेणिमें पास बैठे हुए लड़केसे चुपके २ बातें करने और कानाफूसी करने लगो तो तुम और तुम्हारी श्रेणी के लड़के भी शिक्षासे लाभ नहीं उठा सकते । फिर यह देखो कि पढ़ते समय बातें करना और पाठपर ध्यान न देना उत्तम आचरणके विरुद्ध है, क्योंकि ऐसा करने से तुम अपने शिक्षकका निरादर करते हो और अपना और उसका समय भी वृथा खोते हो । जब तुम्हारा शिक्षक श्रेणीमें नहीं है या कुछ और काम कर रहा है तो तुम्हें चाहिये कि तुम सब चुप चाप रहो और वृथा कोलाहल न करो, क्योंकि यह बात उत्तम आचरणके विरुद्ध है कि जब तुम अकेले हो तो कव्वोंकी नांई कांएं २ करने और चिल्लाने लगो । ४. आज कल उन्नतिका समय है । हिन्दुस्तान के सकल भागों
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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