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________________ कामके करनेमें लगे हुए है । निकम्मे और आलसी मनुष्य अपने लिए भार हैं और उनको अपने जीवनमें कुछ भी स्वाद नहीं आता । इस कारण परिश्रम शाप वा हानि नहीं है वरञ्च एक महादान और लाभ है । जो कुछ कि मनुष्य कर सकता है वह उसका सबसे बड़ा भूषण है और उस कामके करनेसे वह अपना ही मान और हर्ष बढ़ाता है अर्थात् काम करनेसे मनुष्यका सब आदर करते हैं और वह उच्च पदवी और आनन्दको प्राप्त होता है। __ओ हो ! जो लोग परिश्रम करते है और जो यत्न करते है, उनमें एक बड़ी भारी शक्ति आ जाती है । तुझे चाहिये कि अपने अमृल्य समयको वृथा न खोओ, उसमें यथाशक्ति उत्तम २ कार्य करते रहो । कामका करना सर्वोत्तम अधिकार है और मनुष्यके लिए बड़ा उत्तम दान है । तुम्हें उचित है कि अपने जन्मके अ. धिकारपर अपने आपपर और अपनी आत्माओंपर दृढ़ रहो । जो लोग ठाली बैटे रहते हैं और कुछ करना नहीं चाहते, वे अपने जीवन में क्लान्त और दीन रहते हैं और उनका जीना धिक्कार है । परिश्रमका फल अवश्य मिलता है । इस लिए तुम्हें अपने इष्ट मनोरथकी सिद्धिके लिए परिश्रम करना योग्य है । तुम्हें चाहिये कि जो काम करना है उसे तन मन धनसे करो । विद्या बड़े कठिन परिश्रमसे ही प्राप्त हो सकती है और विद्याके प्राप्त करनेके लिए कोई सीधी सड़क वा राजमार्ग नहीं बना हुआ है। जिन लोगोंको तुम पूर्व समयमें धीशक्तिसम्पन्न कहते हो, जिन्होंने बड़ी कीर्ति और यश प्राप्त किया है और जो बड़े बुद्धिमान् प्रसिद्ध हुए हैं, उन सबको अपने कार्यमें सिद्धि प्राप्त करने और अपनी की
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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