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________________ Foran SixitPAGruora.COUSTRACROACTOGGAGALonomyCIRGOLGO, r oid COMBODOO ر شهر رشاقہ بره د SOCIATICARMERIMENShinindiaCOMic कविवर भूधरदासविरचित- २३ _हे विधि ! भूल भई तुमतें, समुझे न कहां कशतूरि बनाइ । दीन कुरंगनके तनमें, तृन - दंत धरे करुना नहिं आई ॥ क्यों न करी तिन जीहै भन ज, रसकाव्य करें परकों दुखदाई । साधु अनुग्रह : दुजन दंड. दुह सधते विसरी चतुराई ॥ ६६ ॥ मनरूपहाथी । छप्पय । ज्ञान महावत डारि. मुमति संकल गहि खंडै । गुरु अंकुहा नहिं गिने, ब्रह्मव्रत-विरख विहंडे ॥ करि निधत सर न्हानि. केलि अघरजसी ठाने । करनच। पलता धरै, कुमति करनी रति मान ॥ डोलत सुछन्द मदमत्त अति, गुण-पथिकन आवत उरै । वैराग्य संभ बांधि नर ! मनमतंग विचरत वुरै ॥ ६७॥ गुमउपकार। कवित्त मनहर । ढईसी सराय काय पंथी जीव वस्यो आय, रत्नत्रय निधि जाप मोख जाको घर है । मिथ्यानिशि कारी १ जहां मोहअंधकार भारी, कामादिक तस्कर समूहनको थर है ॥ सोवे जो अचेत सोई खोवै निज संपदाको, . तहां गुरु पाहरू पुकार दया कर है । गाफिल न हूजे १ १ हरिणोके । २ वृक्ष। ३ कानोंकी चपलता, पक्षभे इन्द्रियाक ॐ विपयोकी चपलता। ८ हथिनी । ५ निकट । Gerovog velvom vervoll Velvetro covas vagravar. Xro VOX VOX VTS VOLVO قه ت ره ی ره ره ره ده رهبری، تشرق مرة نشرة قرشیشه
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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