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________________ HSGOPATRAPARIRATRIMOLEDGREDITORIATRAGRAPAGAINS agaiDEDEOODa وقتی تی هه ر ره نقره ای رندی رت i . .. .... رهاق رورتی ردره در ده فرهمند رورق ... जैनशतक । मदपानजोग, जादोंगन दज्झे । चारुदत्त दुख सहे, वैसवा-विसन अरुज्झे॥ नृप ब्रह्मदत्त आखेटेसों, द्विज शिवभूति अदत्तरति । पररमनिराचि रावन - गयो, साता सेवत कौन गति ? ॥ ६१॥ दोहा। पाप नाम नरपति कर, नरक नगरमें राज। तिन पठये पायक विमन,निजपुरवसती काज॥६२ जिनके जिनके वचनकी, बसी हिये परतीत । विसनप्रीति ते नर तजी, नरकवास भयभीत ६३ कुकविनिन्दा। मत्तगयन्द संवया । ___ राग उदै जग अंध भयो, सहजै सब लोगन लाज गमाई । सीग्व विना नर सीखत है. विषयादिक मेव-: नकी सुघराई ॥ तापर और रचे रसकाव्य, कहा : कहिये तिनकी निठुराई । अंध असूझनकी अखियानमें, झोंकत हैं रज रामदुहाई ॥ ६४ ॥ कंचन कुंभनकी उपमा, कहि देत उरोजनको कवि वार । उपर श्याम विलोकत वे, मनिनीलमकी ढकनी है हूँकि छारे ॥ यों सतवन कहें न कुपंडित, ये जुग: . आमिपपिंड उघारे । साधन झार दई मुंह छार, भये इहि हेत किधी कुच कारे ॥६५॥ १ जले । २ वेश्याव्यसन। : शिकार से । ४ सिपाही। ५ "विषयानके 8 सेवनकी" ऐसा भी पाट है । ६ मूर्ख । ७ मासके लौदे । haocGrosvaravasacocal C ode-cords/9VODOOSE . ....... . EX نقره، روترهای هنرهای سره په مره قر یار می رق رهی D OOGOODCOUGODS ر
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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