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________________ १७ धरे नाना जन्म प्रथमजिनके बाद अबलों । भयो त्यों विच्छेद-प्रचुर तुव लाखों बरपलों ॥२॥ महावीरस्वामी जब सकलज्ञानी मुनि भये। विडोजाके लाये समवसृतमें गौतम गये। तबै नौकारूपा भवजलधि माहीं अवतरी। अरूपा निर्वर्णा विगतभ्रम सांची सुख करी ॥३॥ करें जैसें मेघधनि मधुर त्यों ही निरखरी। खिरी प्यारी प्रानी ग्रहण निजभाषामहँ करी॥ गणेशोंने झेली बहुत दिन पाली मुनिवर। रही थी पै तौलों तिन हृदयमें ही घर करें ॥४॥ अवस्था कायाकी दिनदिन घटी दीखन लगी। तथा धीरे धीरे सुबुधि विनशी अंगश्रुतकी । तबै दो शिष्योंको सुगुरु धरसेनार्य मुनिने । पढ़ाया कर्म-प्राभूत सुखद जाना जगतने ।।५।। उन्होंने हे मातः लिखि लिपि करी अक्षरखती । सवारी ग्रन्थों में झुंततिथि मनाई सुखवती । सहारा देते जो नहिं तुमहिं वे यों तिहि समैं । १-२-३ इन अक्षरोंको सस्कृतकं नियमानुसार दीर्घ पढना चाहिये । ४केवल ज्ञानी । ५ इन्द्रके बुलाये हुए। ६ निरक्षरी-अक्षररहित । ७ गणधरोंने । ८-९ संस्कृतमें पादान्त्य दीर्घ होता है । १० श्रुतपचमीका पर्व ।
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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