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________________ ४६ जैनवानी ॥८॥अशोका मुदेका विवेका वि. धानी। जगजंतुमित्रा विचित्रावसानी। समस्ताचलोका निरस्ता निदानी । नमो देवि वागेश्वरी जैनवानी ॥ ९॥ वस्तुछंद । जैनवाणी जैनवाणी सुनहि जे जीव । जे आगमरुचि धेरै जे प्रतीति मनमाहि आनहि । अवधारहिं जे पुरुष समर्थ पद अर्थ जानहि ॥ जे हित हेतु बनारसी , देहिं धर्म उपदेश । ते सब पावहिं परम सुख, तज संसार कलेशा॥१०॥ इति शारदाष्टक । देवरी निवासी कवि-नाथूरामप्रेमीकृत. सरस्वतीस्तवन। शिखरिणी। जगन्माता ख्याता जिनवरमुखांभोजउदिता। भवानी कल्याणी मुनिमनुजमानी प्रमुदिता ।। महादेवी दुर्गा दरनि दुखदाई दुरगती । अनेका एकाकी दययुतदशांगी जिनमती॥१॥ कहें मातः! तोकों यदपि सब ही नादिनिधना। कथंचित् तो भी तू उपजि विनशै यों विवरना॥ १ दु.खद ई दुगीतको नष्ट करनेवाली । २ द्वादशागी । ३ अनादिनिधन ।
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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