SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३२ जैनाचार्यों का बलकारशास्त्र में योगदान (६) शृङ्खलावेचिश्यहेतुक-दीपक, सार, कारणमाला, एकावली और माला। (७) अपलवमूलक-मीलन, बक्रोक्ति और व्याबोक्ति । (८) विशेषणवैचित्र्यहेतुक-परिकर भौर समासोक्ति । उपयुक्त मलकार-वर्गीकरण के प्रसग में रुद्रट, रुय्यक, नरेन्द्रप्रभसूरि मौर मतिजसेन-इन पार आचार्यों के मतो को उद्धृत किया गया है, जिनमें अन्तिम दो जैनाचार्य है। आचाय नरेन्द्रप्रभसूरि का अलकार-वर्गीकरण सम्यक से प्रभावित है । अन्तर केवल इतना है कि रुग्यक ने जिन अलकारो के मूल में सादृश्य को स्वीकार किया है, वही नरेन्द्रप्रभसूरि ने उनके मूल में अतिशयोक्ति माना है। रुग्यक ने रसबदादि अलकारो को अवर्गीकृत रखा है, किन्तु नरेन्द्रप्रभसूरि ने उन्हें रसवदादि को सज्ञा से अभिहित किया है । शेष विवेचन में प्राय समानता है। ___ अजितसेन ने दो प्रकार से अलकार वर्गीकरण प्रस्तुत किया है, जो विद्यानाथ से पूणत प्रभावित है। जहाँ विद्यानाथ ने मालादीपक मलकार का उल्लेख किया है, वहाँ अजितसेन ने माला और दीपक-दन दो अलंकारों का पृषकपृथक् उल्लेख किया है, जो उचित प्रतीत नही होता है, क्योंकि अजितसेन ने 'माला' अलकार की गणना नहीं की है ।
SR No.010127
Book TitleJainacharyo ka Alankar Shastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy