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________________ HREE प्रतिभा से प्रकार की होती है साहना और बाकिलो । साए लापमान मान के होने वाली सहजा और मन्त्रादि से उत्पन होने वाली बापाविकी कहलाती है। राबशेखर ने सर्वप्रथम प्रतिभा के दो भेद किए हैकापणी और भावविधी। पुन कारयित्री के दीन भेद माने है-महणाबाहायर मार औपाधिको । कि हेमचन्द्र ने व्युलत्ति बौर सम्मान को प्रतिमा का कारक माना है, मत व्युत्पत्ति और अभ्यास काव्य के सामान हेतु नहीं कि प्रतिभारहित मुत्पत्ति और अभ्यास विमान के मए है। यहाँ यह है कि हेमचन्द्र ने यद्यपि दणी का साक्षात् उल्लेख नहीं किया है क्यापि उस कथन से ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने खण्डीके विद्यते यद्यपि पूर्ववासना ।' इत्यादि कथन का खण्डन अवश्य किया है। मरेन्द्रसमसूरि, अक्तिन' और बाग्मट-द्वितीय हेमचन्द्र की तरह व्युत्पत्ति और अम्मास ये संस्कृत प्रतिभा को ही काव्य का हेतु मानते हैं। मावदेवसरि प्रतिभा, व्युत्पत्ति बीर अम्मास के सम्मिलित रूप को काव्य का हेतु मानते हैं। सिद्धिचन्द्रगेणि ने मम्मट-सम्मत-काव्य-हेतुओं का खण्डन करते हुए लिखा है कि-'हिम्मादावपि काव्योमवदर्शनात, शक्तेरेव हेतुत्वात् ५० वर्षात हिम्म (बालक) मादि में भी १ प्रतिभाष्य हेतु । -काव्यानुशासन, ११४ ॥ २ व्युत्पत्यभ्यासाभ्यां सस्कार्या। - बहो, १७ ३. सम्बरणक्षयोपशमात्रात् सहना । मन्त्रावरोपाधिकी। वही १५-६ । ४. काव्यमीमांसा, पृ. ३२ । *बत एव तो काव्यस्य सम्बात्कार प्रतिमोपकारिणी तु भवतः। वृष्येते हि प्रतिमाहीनस्य विफलो व्युत्पत्यम्यासी । ६. कारण प्रतिकात भुत्तत्यासामिला। पीचं नांकुरस्येव काश्यपी-जमसंगतम् ॥ संकारमहोदधि, १६ । ७. व्युत्पाबम्बासा सदायघटनापटा। वीवशालिनी प्रतिभास्य श्री अकारचिन्तामणि, १६ ! ., व्यत्ययासकवा प्रतिमास्क हेतु । --काम्यानुवासना .२
SR No.010127
Book TitleJainacharyo ka Alankar Shastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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