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________________ बार बान्यास की अपेक्षा प्रतिमा पर अधिक बल दिया है। हालाकि ये प्रतिभा को काव्य का अनिवार्य एवं प्रमुख हेतु मानते। दी, सामायिक प्रतिमा अत्यन्त निर्मल विद्याध्ययन एवं उसको बहुम्योजना की ही कामा केतु मानते है। उन्होंने भामह की तय प्रतिमा पर कि कर वानों का समान रूप से महत्व स्वीकार किया है। किन्तु इसमें कमाने उन्होंने लिखा है कि यदि वह मदभुत प्रतिमा नमी हो तो भी मालामाल (युत्पत्ति) और अभ्यास से वापी अपना दुसस अनुबह प्रधान करती है। कवित्व-शक्ति के कृश होने पर भी परिश्रमी व्यक्ति विद्वानों की मोष्ठी में विश्व प्राप्त करता है । इससे जात होता है कि दण्डी प्रतिमा के समान में भी मात्र व्युत्पत्ति और अभ्यास के द्वारा काव्य-नयना स्वीकार करते है। आमाबावर्षद नै प्रतिभा का महत्व स्वीकार करते हुए लिखा है कि-उस मास्वाद पूर्व अर्थतत्व को प्रकाशित करने वाली महाकवियो की वाणी माविक स्फुरणशील प्रतिभा के वैशिष्ट्य को प्रकट करती है। इतना ही नही उन्होंने अव्युत्पत्तिजन्य दोष को प्रतिमा के द्वारा आच्छादित होना भी स्वीकार किया है' अर्थात् आनन्दवर्धन ने प्रतिभा को सर्वाधिक महत्व प्रदान किया है। लोचमकार ने प्रतिभा की व्याख्या करते हुए लिखा है कि पूर्व बस्तु के निर्माण में समर्थ प्रज्ञा को प्रतिभा कहते हैं। मम्मट ने काव्य-कारण प्रसंग में लिखा है कि शक्ति, लोक (व्यबहार) शास्त्र तथा काव्य मादि के पर्या लोचन से उत्पन्न निपुणता और काव्य (की रचना शैली तथा बानोचना पति) को १ नैसर्गिको च प्रतिभा अतं च बहुनिर्मलम् । अमन्दश्चाभियोगोस्या' कारण काव्यसम्पद ।। -काव्यावर्ष, ११.३। २ म विद्यते यद्यपि पूर्ववासनागुणानुबन्धि प्रतिभानमतम् । बतेन मलेन च वागुपाखिता न करोत्येव कमप्यनुग्रहम् ॥ कथे कवित्वेऽपि जना. कृतधमा विदग्भगोष्ठीषु विहाँ मीपाते। ३. सरस्वती स्वादु तदर्थवस्तुनिष्यन्दमाना महा कवीनाम् । अलोकसामान्यमिन्यनक्ति प्रतिस्फुरन्त प्रतिमाविशेषम् ।। ४. बध्युत्पत्तिको दोषः सत्या संवियते कवे । बस्त्वशक्तिकृतस्तस्स मटित्यवभासते ।। -वन्यालोक, शान्ति। ५. अपूर्ववस्तुनिर्माणमा मा (प्रतिमा)। वही, बोपन, ११ ॥
SR No.010127
Book TitleJainacharyo ka Alankar Shastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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