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________________ S derer का कारन में योगदान ae austree शैली में ऐसा तर्क प्रस्तुत नहीं किया है, जो कार शास्त्रियों को ब्राह्म हो और न ही अपने पक्ष के समर्थन में कोई प्रबंध तर्क प्रस्तुत किया है। इस प्रकार समस्त काव्य-प्रयोजनों का सम्यक् प्रकार से आलोडन- विमोहन करने पर यही निष्कर्ष निकलता है कि जैनाचार्यों ने पूर्व स्वीकृत काव्याप्रयोजनों को आधार मानकर अपना मत प्रस्तुत किया है तथापि वाग्भट - प्रथम द्वारा मान्य एक मात्र यश रूप प्रयोजन अपनी मौलिकता की छाप छोड़ता है । इसी प्रकार आचार्य हेमचन्द्र ने जो मम्मट सम्मत छ काव्य प्रयोजनों में से तीन का सयुक्ति खण्डन कर नवीन विचार प्रस्तुत किया है, वह दलाच्य और तथ्य परक भी है । अत इसका अपलाप नहीं किया जा सकता है । काव्य-हेतु . काव्य-रचना में जो हेतु अर्थात् कारण हो वह काव्य हेतु है । सामान्यतया कारण दो प्रकार के होते हैं-निमित्तकारण और उपादानकारण । प्रस्तुत में fafeterरण को ही काव्य-हेतु की सज्ञा दी गई है। इसके अभाव मे काव्य की सर्जना सम्भव नही है । सर्वप्रथम आचार्य भामह ने काव्य-हेतुओं पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि गुरु के उपदेश से मूर्ख लोग भी शास्त्रो का अध्ययन करने में समर्थ हैं, किन्तु काव्य किसी प्रतिभावान व्यक्ति के ही द्वारा कभी-कभी निर्मित होता है | व्याकरण, छन्द, कोश, अर्थ, इतिहासाश्रित कथाएँ, लोकज्ञान, तर्कशास्त्र और कलाओ का काव्य-सर्जना हेतु मनन करना चाहिए। शब्द और अर्थ का विशेष रूप से ज्ञान करके काव्य-प्रणेताबो की उपासना और अन्य कवियो की रचनाओ को देखकर काव्य-सर्जना में प्रवृत्त होना चाहिए । यहाँ क्रमश प्रतिभा, व्युत्पत्ति और अभ्यास का विवेचन किया गया है। भामह ने व्युत्पत्ति १ गुरूपदेशावध्येतुं शास्त्रं जडधियोऽप्यलम् | काव्य तु जायते जातु कस्यचित्प्रतिमावत ॥ शब्द छन्दोऽभिधानार्था इतिहासाश्रया कथा. । काव्या मी ॥ लोको युक्ति कलावचेति मन्तव्या शब्दाभिधेये विशाय कृत्वा freोक्याम्यनिवन्यांश्च कार्य सहिदुपासनाम् । काव्यferrer || -काव्याकार, १२५, ६-१० ।
SR No.010127
Book TitleJainacharyo ka Alankar Shastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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