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________________ मंदिरों के विविध रूप चौबीसी-मंदिर चतुर्विंशति जिनालय को हिदी मे 'चौबीसी मंदिर' कहते हैं। शिल्पकला में जो चतुर्विंशति-पट्ट (एक ही शिला पर चौबीसो तीर्थंकरो की मूर्तियाँ) का प्रचलन रहा है, उसी से इसप्रकार के मन्दिर के निर्माण की प्रेरणा संभवतः मिली होगी। एक ही मंदिर मे एक गर्मालय (कक्ष) में एक या अलग-अलग देदियो पर एक-एक तीर्थंकर की मूर्ति स्थापित करने से उस मंदिर को चौबीसी मदिर' कहने लगते हैं। ऐसा मंदिर विशाल हो, तो उसमें प्रत्येक तीर्थकर-मूर्ति के लिए एक पृथक् देव-कुलिका (वेदी के बराबर छोटा कक्ष) हो सकती है, या फिर एक पृथक कक्ष हो सकता है। देव-कुलिकाओं या कक्षो की संख्या चौबीस की जगह वास्तव मे पच्चीस होती है, आठ-आठ चारो दिशाओ मे और एक मध्य मे । मध्य मे कोई एक तीर्थकर-मूर्ति मूलनायक के रूप में स्थापित की जाती है। उस मूर्ति की अपने क्रम की जो देव-कुलिका या कक्ष खाली हो जाता है, उसमे सरस्वती की मूर्ति अर्थात् जिनवाणी स्थापित की जाती है। उल्लेखनीय है कि तीर्थंकर-मूर्ति की जगह यदि किसी को देनी ही हो, तो जिनवाणी को दी जा सकती है, किसी अन्य देव या देवी की मूर्ति को नहीं; क्योंकि सरस्वती तीर्थकर के उपदेश, अर्थात् जिनवाणी, प्रतीक मानी गई है। गृह-मंदिर आवास-गृह में भी धर्मस्थान या मंदिर के निर्माण का विधान वास्तुविद्या में किया गया है। यह आवास-गह मे पूर्व दिशा में ऐसे स्थान पर बनाया जाए, जो गृह में प्रवेश करते समय बाएँ हाथ पर पड़े और जो अन्य स्थानों से नीचा नहीं हो। इस पर आधिपत्य गृहस्वामी का रहे और इसकी व्यवस्था भी वही करे; तथापि यह सबके लिए खुला रखा जाए। इसके अतिरिक्त सर्वोपरि यह ध्यान रखा जाए कि गृह-मंदिर के निर्माण में भी केवल न्यायोपार्जित धन का उपयोग हो। (जन वास्तु-विधा
SR No.010125
Book TitleJain Vastu Vidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopilal Amar
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year1996
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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