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________________ 'वत्थु-सार-पयरण' के अनुसार सिंह-द्वार (मेन गेट) पूर्व दिशा में, रसोई आग्नेय कोण मे, शयन-कक्ष दक्षिण में, शौलाचय (लेट्रिन) नैर्ऋत्य में, भोजनकक्ष पश्चिम में, आयुध आदि उपकरण (स्टोर) वायव्य में, तिजोरी आदि कीमती सामान उत्तर में और पूजागृह ऐशान कोण में होना चाहिए। 'उमास्वामी श्रावकाचार' (पद्य 112-113) में भी इसीप्रकार की व्यवस्था बताई गयी है। अगर सिंह-द्वार पूर्व दिशा में ना होकर अन्य किसी दिशा मे हो, तो भी अंदर के कक्षो की दिशायें वास्तुशास्त्रोक्त रीति से ही रखी जानी चाहिए। यह कथन भ्रमात्मक है कि 'सिंह-द्वार की दिशा बदलने से अन्य कक्षों की दिशायें भी बदल जाएंगी। सिंह-चार (मेन-गेट) की दिशा जो सिहद्वार पूर्व की ओर हो, उसे विजयद्वार' कहते हैं। इसीप्रकार जो पश्चिम की ओर हो उसे 'मकर (क्रोकोडाइल) द्वार', जो उत्तर मे हो उसे 'कुबेरद्वार' और जो दक्षिण में हो उसे 'यमद्वार' कहते हैं। स्पष्ट है कि सिहद्वार दक्षिण में बनाकर कोई भी यम का द्वार नहीं खोलना चाहेगा। तथापि यदि ऐसा करना अनिवार्य हो जाए, तो वह बीचोंबीच या जहाँ चाहे नहीं बनाया जाए, बल्कि भूमि की दक्षिण मे लंबाई (या चौड़ाई) के आठ समान भागों में से दूसरे या छठे भाग मे बनाया जाए। उदाहरण के लिए, दक्षिण में भूमि की लंबाई चौबीस फुट हो, तो सिहद्वार चौथे से छठे फुट के बीच, या, सोलहवें से अठारहवे फुट के बीच बनाना चाहिए। इसीप्रकार आठ भागों में से चौथे या तीसरे भाग में पूर्व दिशा में, तीसरे या पाँचवें भाग में पश्चिम दिशा में और तीसरे या पाँचवें भाग में उत्तर दिशा मे सिंहद्वार बनाया जाए। घर के अंदर जाने का मुख्यद्वार भी इसी नियम के अनुसार बनाया जाए। यहाँ तक कि ऊपर की मंजिल या मंज़िलों में जाने के लिए सोपानमार्ग या जीना भी इसी नियम के अनुसार बनाया जाए। सिंह-वार और मुख्य द्वार का संबंध ‘समरांगण-सूत्रधार' में लिखा है कि सिंहद्वार और मुख्यद्वार की दिशा एक ही हो, अर्थात् घर में सम्मुख प्रवेश हो, तो उस उत्संग' नामक प्रवेश से सौभाग्य, सतान, धन-धान्य और विजय प्राप्त होती है। - जन वास्तुविधा
SR No.010125
Book TitleJain Vastu Vidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopilal Amar
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year1996
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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