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________________ आवास गृहों के अंग आवास गृहों के अंग : सामान्य परिचय आवास गृह (घर, मकान) के अग हैं: 'शाला' जिसके लिए कक्ष, कोठा, कमरा, ओरडा आदि शब्द प्रचलित हैं। 'अलिंद' वह बरामदा या दालान है, जो घर के सामने हो; किन्तु घर के दाएँ या बाएँ या पिछवाड़े जो बरामदा हो, उसे 'अलिंद' नहीं, बल्कि 'गुजारी' कहते हैं। जो स्थान छत के नीचे चारों या तीन ओर से खुला हो, वह 'मंडल' कहलाता है; यह शब्द वास्तुविद्या में बहुत प्रचलित है और इसका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व है। 'जालक' या 'जालिक' का अर्थ है: खिडकी, झरोखा, गवाक्ष, वातायन, हवाकश आदि । भित्ति (मीट, दीवार), स्तंभ (खंभे), धरण (कडी, पीठ, लिंटल) आदि तो आवासगृह के अंग होते ही हैं; इनके अतिरिक्त द्वार, दुकान आदि भी घर के अंग माने गए हैं । वास्तु-विद्या मे इन सबके आकार-प्रकार, अनुपात, स्थिति, दिशा आदि पर सूक्ष्मता से विचार किया गया है।" उसमे शुभाशुभ फल का निर्देश भी विभिन्न दृष्टिकोणों से दिया गया है। आवास गृह के अंग : दुकान दुकान का अग्रभाग पृष्ठभाग की अपेक्षा अधिक चौड़ा और ऊँचा हो, ताकि उसमे अधिक-से-अधिक वस्तुओ का अच्छे-से-अच्छा प्रदर्शन किया जा सके। सिह का मुख भी ऐसा ही होता है। दुकान में उद्यम की अनिवार्यता है, सिह उद्यम का प्रतीक है; पंचतंत्र' में ठीक ही लिखा है: "उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मीः”, अर्थात् उद्योगी पुरुषरूपी सिंह को ही लक्ष्मी प्राप्त होती है। सिंह तीर्थकर महावीर का भी चिह्न है। दुकान या कार्यालय का मुख यथासंभव उत्तर की ओर हो । उत्तर (दिशा) उत्तर ( जवाब या टक्कर) का प्रतीक है, जो दूकान की सफलता के लिए अनिवार्य है। जैसा कि कहा जा चुका है, उत्तर कुबेर की दिशा है और कुबेर का दूसरा नाम धनद' अर्थात् धन देनेवाला है । जैन वास्तु-विद्या 52
SR No.010125
Book TitleJain Vastu Vidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopilal Amar
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year1996
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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