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________________ वास्तु-विद्या और चित्रकला शिल्प की भाँति चित्र भी स्थापत्य के साथ विकसित हुए। प्रागैतिहासिक काल में कुछ क्षेत्रों में तो स्थापत्य या शिल्प के प्रचलन से पूर्व ही चित्राकन द्वारा गुफाएँ अलंकृत की जाने लगी थीं। ये चित्रांकन ही निखर-सँवरकर मन्दिरों में प्रविष्ट हुए, तो दर्शकों के पुण्य-सचय का निमित्त बने और निवास-गृहों में प्रविष्ट हुए. तो नव-वधुओं को उलझन में डालने लगे; क्योंकि उनमें चित्रित नर-नारियों को वे सजीव समझ बैठती थीं।। वास्तुविद्या और चित्रकला का पास्परपरिक सहयोग एवं सम्बन्ध अनुपम है। अजता, बादामि, ऐलोरा, सित्तन्न-वासल, विजय-मंगलम, तिरुमलय, कांचीपुरम आदि विशेषतः दक्षिण भारतीय तीर्थ जितने स्थापत्य और शिल्प के कारण प्रसिद्ध हैं; उतने ही चित्रांकनों के कारण जाने जाते हैं। पाडुलिपियों अर्थात् हस्तलिखित ग्रन्थों में सहस्रों की संख्या में बहरंगी चित्र बनाए गए, उनमें स्वर्ण-निर्मित रोशनाई तक का प्रयोग किया गया। धर्मशास्त्र __ वास्तु अर्थात् 'भूमि और उस पर निर्माण के लिए धन चाहिए। धन की प्राप्ति के लिए सुलझी हुई दृष्टि, कुशल कार्यक्रम और कठोर परिश्रम चाहिए; ये तीनो एक-रस होकर धन तो जुटाते ही हैं, धर्म की भावना भी जगाते हैं। इससे स्पष्ट है कि वास्तु-विद्या और धर्म की भावना का जन्म साथ-साथ एक ही गर्भ से होता है। इष्ट-देव के मूर्तीकरण में, मूर्ति के लिए मदिर के निर्माण में, मंदिर के अनुकूल साज-सज्जा में वास्तु-विद्या ही काम करती है। दूसरी ओर भूमि के चयन और संस्कार में, निर्माण की रूपरेखा और शुभारंभ में, सजावट और गृह-प्रवेश में धर्मशास्त्र की भूमिका होती है। इसप्रकार धर्मशास्त्र और वास्तु-विद्या एक-दूसरे की पूर्ति करते हैं।" कहा जा सकता है कि धर्मशास्त्र ने वानप्रस्थ, संन्यास, गात्र-मात्र. परिग्रह (शरीर ही है परिग्रह जिनका, ऐसे दिगंबर साघु) आदि शब्द गढ़कर वास्तुविद्या को पीछे ढकेला है; परंतु यह भी तो कहना होगा कि धर्मशास्त्रों ने विवाह, निर्वाह, दान, सत्कार आदि के विधान करके वास्तु-विद्या को बढ़ावा भी दिया है। पंडित आशाधर जी ने तो यहाँ तक कह दिया है कि "असली घर तो गृहिणी (धर्मपत्नी) है, न कि दीवारें और आसन्दिकी (सोफासेट) आदि। 20 जन पारत-विधा
SR No.010125
Book TitleJain Vastu Vidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopilal Amar
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year1996
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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