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________________ वर्तमान में टोंक व चरण-चिह्न (फुट-प्रिंट्स) निर्मित हुए हैं। धरण-चिह्न दिगम्बर-परम्परा के हैं और शास्त्रोक्त हैं। अतः पूर्व 'प्री०वी० कौंसिल' तथा वर्तमान में 'सुप्रीम कोर्ट ने इसे मान्य किया है। इस तीर्थराज को 'दिगंबर तीर्थ सिद्ध करने का यह प्रबल प्रमाण है। दिशा-विदिशा में शुभाशुभ का इस कृति में सुन्दर उल्लेख है। ज्योतिषशास्त्र में सभी विद्वानों ने उत्तरायण सूर्य में विव-प्रतिष्ठा आदि मांगलिक कार्य-संपादन करना बताया है। परन्तु आजकल 'अधिकमास (मध्य का), 'मलमास' (नवम सूर्य का) एवं गुरु-शुक्रास्त के वर्जित मुहतों में भी प्रतिष्ठायें व विवाह आदि होने लगे हैं, जिनके परिणाम की ओर हमारा ध्यान नहीं है। दक्षिणायन सूर्य में बिब-प्रतिष्ठा नहीं होती। मीन राशि के सूर्य में भी यह निषिद्ध है। मंदिर निर्माण, गृह-निर्माण की राशि. माह और तिथि, वार निश्चित हैं। द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के संबंध में लेखक ने इसमें अच्छा वर्णन किया है। भाव की दृष्टि से गोम्मटेश्वर बाहबलि की मर्ति के निर्माता कारीगर ने निःस्पृह-भाव से मूर्ति निर्माण की थी। मैं अनेक व्यक्तियों को जानता हूँ, जिन्होने मंदिर व मूर्ति-निर्माण के अवसर पर प्रतिष्ठा-पूर्ण होने तक ब्रह्मचर्य और व्रतोपवास-संयमपूर्वक रहने का नियम ले रखा था। प्रतिष्ठाकारक व प्रतिष्ठाचार्य के भाव व क्रिया पर मंदिर व मूर्ति में अतिशय निर्भर है। इसीलिए प्रतिष्ठापाठ में दिगम्बराचार्य से सरिमंत्र देने हेतु प्रतिष्ठा में निवेदन किया जाना है। ___ वर्तमान मे गृहस्थ-लोग अपने गृह में प्लास्टिक या अन्य धातु की मूर्तियाँ रखकर अपना आराधना-घर पृथक् बनाने लगे है, जो उचित नहीं है। अप्रतिष्ठित-मूर्ति रखकर उसकी पूजा-आरती-करना शुभ-सूचक नहीं है। इस ग्रन्थ में जीर्णोद्धार की चर्चा करते हुए जो कुछ भी प्रमाण दिये हैं, उनके संबंध में यह मेरा निवेदन है कि जो प्रतिमायें प्राचीन हैं और उनका कोई उपांग साधारणरूप में खंडित हो गया हो, तो कुछ लोग मूर्ति के समस्त अवयव छेनी से छीलकर उपांग को नवीनरूप में निर्माण कराने लगे हैं। कुछ लोग मूर्ति पर लेप भी रखते है यह उचित नहीं। शास्त्र में प्रतिष्ठित-मूर्ति पर टांकी लगाना निषिद्ध है। प्राचीनता कायम रखने का महत्त्व है। इससे मूर्तिकला के इतिहास की जानकारी मिलती है। मंदिर नवदेवताओं के अन्तर्गत है। उसकी पूजा होती है। प्रतिष्ठा जन पाल-विया VHE
SR No.010125
Book TitleJain Vastu Vidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopilal Amar
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year1996
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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