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________________ , उ०-प्रश्नोत्तर १०१ से १०८ तक के अनुसार उत्तर दो। प्र० १२०-प्रोषधोपचास ही निर्जरा है। इस वाक्य पर निर्जरातत्व सम्बन्धी जीव की भूल का स्पष्टीकरण कीजिये २ । उ०-प्रश्नोत्तर १०१ से १०८ तक के अनुसार उत्तर दो। मोक्षतत्व सम्बन्धी जीव की भूल-का-स्पष्टीकरण . . । प्र० १२१-मोक्षतत्व के सम्बन्ध मे अज्ञानी क्या मानता है ? । . उ०- मोक्ष मे पूर्ण निराकुच सुख है ऐसा न मानकर शीर के 'मौज-शौक मे भी सुख मानता है। • प्र० १२२-मोक्ष मे पूर्ण निराकुल-सुख है ऐसा न मानकर शरीर के मौज-शौक मे.भी निराकुल सुख रुप मान्यता को छहढ़ाला, की प्रथम ढाल मे क्या बताया है ? . । उ०-'मोह महामद पियो अनादि भूल आपको भरमत वादि ।' अर्थात शरीर के मौज-गौक से भी मोक्षवत् सुख है ऐसी मान्यता को मोहरूपी महामदिरापान बताया है।' ia . •i . . प्र० १२३-शरीर के मौज-शौक , मे ही मोक्ष सुख है। ऐसी भान्यता को मोहरुपी महामदिरापान-क्यो बताया है ? '', उ०-आत्मा की परिपूर्ण शुद्ध दशा का प्रगट होना मोक्षतत्त्व है। उसमे आकुलता का सर्वथा अभाव है और पूण स्वाधीन निराकुल सुख है (२) इसको भूलकर शरीर के मौज-गौक मे भी निराफुल सुख मानने के कारण मोहरूपी मदिरापान बताया है। प्र० १२४-शरीर के मौज-शौक मे भी मोक्ष सुख है ऐसी मान्यता को फल. छहढाला.को प्रथम ढोल मे क्या बताया है ? ,,
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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