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________________ ( ५७ ) प्र० १०८ - अनशनादि तप से निर्जरा मानने रूप मान्यता को आपने निर्जरातत्व सम्बन्धी जीव को भूल रूप अगृहीत -गृहीत मिथ्यादर्शनादि बताया । परन्तु जो अपने को ज्ञानी मानते है वह भी अनशनादि तप से निर्जरा होती है ऐसा कहते सुने - देखे जाते है । क्या ज्ञातियो को भी निर्जरातत्व सम्बन्धी जीव की भूलरूप अगृहीत गृहीत मिथ्यादर्शनादि होते हैं ? उ०- ज्ञानियों को विल्कुल नहीं होते है । (१) क्योकि जिन, जिनवर और जिनवरवृषभो ने अनशनादि तप से निर्जरा माननेरूप मान्यता को निर्जरातत्त्व सम्बन्धी जीव की भूलरूप अगृहीत -गृहीत मिथ्यादर्शनादि बताया है, परन्तु ऐसे कथन को नही कहा है । (२) ज्ञानी जो बनते है वे निर्जरातत्त्व सम्बन्धी जीव की भूलरूप अगृहीतगृहीत मिथ्यादर्शनादि का अभाव करके ही बनते है । (३) ज्ञानियों को हेय ज्ञेय - उपादेय का ज्ञान वर्तता है । ( ४ ) अनशनादि तप से निर्जरा होती है - ज्ञानी के ऐसे कथन को आगम में उपचरित सदभूत व्यवहारनय कहा है | प्र० १०६ - अवमोदयं ही निर्जरा है। इस वाक्य पर निर्जरातत्व सम्बन्धी जीव की भूल का स्पष्टीकरण कीजिये । उ०- प्रश्नोत्तर १०१ से १०८ तक के अनुसार उत्तर दो । प्र० ११०- पाच इन्द्रियो के विषयों का रूक जाना ही निर्जरा है । इस वाक्य पर निर्जरातत्त्व सम्बन्धी जीव की भूल का स्पष्टीकरण कीजिये ? उ०- प्रश्नोत्तर १०१ से १०८ तक के अनुसार उत्तर दो। प्र० १११ - अनाज न खाना ही निर्जरा है । इस वाक्य पर निर्जरातत्त्व सम्बन्धी जीव को भूल का स्पष्टीकरण कीजिये ? उ०- प्रश्नोत्तर १०१ से १०८ तक के अनुसार उत्तर दो।
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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