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________________ (२७३ ) (५) प्रवचनसार गाथा ८० के प्रवचन मे पूज्य श्री कानजी स्वामी कहते है कि-'वर्तमान में इस क्षेत्र से क्षायिक सम्यक्त्व नही है तथापि 'मोह क्षय को प्राप्त होता है' यह कहने मे अन्तरग का इतना बल है कि जिसने इस बात का निर्णय किया उसे वर्तमान मे भले ही क्षायिक सम्यक्त्व न हो तथापि उसका सम्यक्त्व इतना प्रवल और अप्रतिहत है कि उसमे क्षायिक दशा प्राप्त होने तक बीच मे कोई भग नही पड़ सकता। [सम्यग्दर्शन प्रथम भाग पृष्ठ ५५] ५४ ध्रुव का ध्यान करलो आतम ज्ञान परमातम बन जइयो । करलो भेद विज्ञान ज्ञानी वन जइयो ।। टेक ।। जग झूठा और रिस्ते झूठे रिस्ते झूठे नाते झूठे॥ साचो है आतमराम परमातम बन जइयो ।॥ १॥ कुन्दकुन्द आचार्य देव ने आतम तत्व बताया है ।। शुद्धातम को जान परमातम बन जइयो ।। २ ।। देह भिन्न है आत्म भिन्न है ज्ञान भिन्न है राग भिन्न है । ज्ञायक को पहचान परमातम वन जइयो ।। ३ ।। कुन्दकुन्द के प्रताप से ध्रुव की धूम मची हेरे। धरलो ध्रुव का ध्यान परमातम बन जइयो ।॥ ४ ॥ ५५ वस्तु स्वरुप धन्य धन्य वीतराग वाणी, अमर तेरी जग मे कहानी। चिदानन्द की राजधानी, अमर तेरी जग मे कहानी ।। टेक ॥ उत्पाद-व्यय अरू ध्रौव्य स्वरुप, वस्तु बखानी सर्वज्ञ भूप ।। स्याद्वाद तेरी निशानी, अमर तेरी जग मे कहानी ।।१।। नित्य-अनित्य अरू एक-अनेक, वस्तु कथंचित भेद-अभेद ॥ अनेकान्त रूपा बखानी, अमर तेरी जग मे कहानी ।। २ ॥
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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