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________________ ( २७२ ) जप तप नेम तीर्थयात्रा दान पूजादिक है सो ब्रह्मज्ञानाग्नीनीविना सर्व कच्चा है जैसे रसोईमे आटा दाल चनादिक चावल बीजनादिक है परन्तु अग्नीविना सर्व कच्चा है तैसे हो आत्मज्ञानविना मुनीपण क्षुल्लकपण आदि सर्व कच्चा हे वाप्त हे मुमुक्षुजन वो स्वात्मानुभवकी प्राप्त को प्राप्ती के अर्थ इन ग्रन्या एकानमें अपणे मनको मनमै मनन करणा-पढणा वाचना।" प्र०-पंचम काल में जन्मे हुये जीव को क्षायिक सम्यक्त्व तो होता ही नहीं है, किन्तु प्रथम और औपशमिक सम्यक्त्व प्राप्त का अभाव करके क्षयोपशमिक सम्यक्त्व होने के विषय में आचार्यों न क्या कहा है ? उत्तर-(१) सममसार कलश चार मे आया है कि "वान्त मोहा" अर्थात् मिथ्यात्व का वमन हो जाता है, वह अब पून नही आयेगा। (२) समयसार गाथा ३८ की टीका के अन्त मे आता है कि "निज रस से ही मोह को उखाडकर फिर अकुर न उपजे ऐसा नाश करके महान ज्ञान प्रकाश मुझे प्रगट हुआ है। (३) प्रवचन सार गाथा ६२ की टीका मे भी कहा है वह बहिमोहद्रष्टि तो आगम कौशल्य तथा आत्मज्ञान से नष्ट हो जाने से अब मुझे पुन उत्पन्न नहीं होगी। (४) समयसार कलश ५५ मे भी आया है कि "मै पर को करता है-ऐसा पर द्रव्य के कर्तृत्व का महा अहकार रुप अज्ञान अधकार जो अत्यन्त दुनिवार है वह अनादि ससार से चला आ रहा हैआचार्य कहते है अहो । परमार्थनय का ग्रहण से यदि एक बार भी नाश को प्राप्त हो तो ज्ञानघन आत्मा को पुन बन्धन कैसे हो सकता
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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