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________________ ( २६१ ) ? त्रस-स्थावर भेद है । क्या अध्यात्म के अनुसार कहने वाला भी जीव के ज्ञान से शून्य है उत्तर - अध्यात्म के अनुसार कहने वाला भी जीव के ज्ञान से शून्य है क्योकि उसने किसी प्रसंगानुसार अध्यात्म के अनुसार कहा तो है परन्तु अपने को (त्रिकाली निज भगवान को ) आपरूप ( ज्ञानदर्शनादि गुण रूप ) जानकर ( धर्म की प्राप्ति कर ) पर का अश भी अपने मे न मिलाना और अपना अश भी पर मे न मिलाना- ऐसा श्रद्धान न होने के कारण अध्यात्म के अनुसार जानकर कहने वाला भी जीव ज्ञान से शून्य ही है | प्र० ५ - जो जीव दिगम्बर जैन है, जिनाज्ञा को मानता है, निरन्तर शास्त्र का अभ्यास करता है और सच्चे देवादि को ही मानता है ऐसे मिथ्यादृष्टि जैन को समझाते हुये पं० जी ने क्या कहा है ? उत्तर - जैसे अन्य मतावलम्बी निर्णय किये विना मै ज्ञानवाला मै काला हूँ मै माला जपता हूँ, मै उपवास करता हूँ - ऐसा मानता है, उसी प्रकार दिगम्बर धर्मी होने पर, जिनाज्ञा मानने पर, निरन्तर शास्त्रो का अभ्यास करने पर, सच्चे देवादि को मानने पर भी आत्मा अनन्तगुणमयी है, मै प्रवचनकार हूँ, मै एकासन करता हूँ, मै उपवास करता हूँ, सिद्ध चक्र का पाठ करता हूँ, मै भगवान के दर्शन किये बिना भोजन नही करता हूँ। मै रोजाना तीन बार णमोकार मंत्र की जाप जपता हूँ आदि शरीर की क्रियाओ मे अपनापना मानता है वह तो अन्यमतावलम्बी से भी बुरा है । प्र० ६ - दिगम्बर धर्मी होने पर, जिनाज्ञा मानने पर, निरन्तर शास्त्रों का अभ्यास करने पर और सच्चे देवादि को मानने पर भी शरीर की क्रियाओ को अपना मानने वाला अन्यमतावलम्बी से भी बुरा क्यो है ? उत्तर- दिगम्बर शास्त्रो मे निश्चय व्यवहार अपेक्षा कथन किया
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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