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________________ (२६० ) जीव-अजीव का अन्यथापना पर १२ प्रश्नोत्तर मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ २२५] प्र. १-जो जीव दिगम्बरधर्मी है, जिनाज्ञा को मानता है, निरन्तर शास्त्रो का अभ्यास करता है, सच्चे देव-गुरू-धर्म को ही मानता है, कुगुरू-कुदेव-कुधर्म को नही मानता है, वह जीव तत्व का जानना किसे मानता है ? उत्तर-जीव के दो भेद है-बस और स्थावर-यह जीव को जानना मानता है। प्र० २~जो जीव दिगम्बर धर्मी है, जिनाज्ञा को मानता है, निरन्तर शास्त्रो का अभ्यास करता है, सच्चे देवादि को मानता है उसका जीव के दो भेद हैं-त्रस और स्थावर-यह जीव का जानना झूठा क्यो है ? उत्तर-उसने सिद्ध भगवान को जीव नही माना , इसलिये जीव के दो भेद है-बस और स्थावर-ऐसी मान्यता वाले को जीव-अजीव का ज्ञान नहीं है। प्र० ३--जो जीव दिगम्बर धर्मी है, जिनाज्ञा को मानता है, निरन्तर शास्त्रो का अभ्यास करता है, सच्चे देवादि को ही मानता है उसका जीव को जानना कि जीव के दो भेद है-ससारी और मुक्त । संसारी के दो भेद हैं-त्रस और स्थावर । स्थावर के पाँच भेद हैं और त्रस के दो इन्द्रिय से लेकर पाँच इन्द्रिय तक के जीव हैं-क्या उसका जीव का जानना ठीक है? उत्तर-बिल्कुल ठीक नहीं है क्योकि अध्यात्म शास्त्रो मे भेदविज्ञान का कारणभूत जैसा जीव का निरूपण किया है वैसा न मानने के कारण उसका जीव-अजीव का जानना भी झूठा ही है। प्र० ४-किसी को प्रसंगानुसार अध्यात्म के अनुसार कहना आ जाये कि जीव तो त्रिकाल ज्ञानस्वरूप ही है। पर्याय की अपेक्षा से
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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