SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३५ ) है । ( ५ ) परन्तु काय से रहित अकाय स्वभाव वाला आत्मा है । ( ६ ) उसका आश्रय लेकर पर्याय में अकायपना प्रगट होवे । यह मम है | प्र० ३५८ - ( १ ) आत्मा पृथ्वी आदि काय वाला है । ( २ ) आत्मा को काम सम्बन्धी द्रव्य कर्म का उदय है । यह किस अपेक्षा कहा जाता है ? उत्तर- अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनय से कहा जाता है, परन्तु ऐसा है नही, क्योकि आत्मा तो अकाय स्वभाव है । प्र० ३५६ - आत्मा को काय सम्बन्धी ज्ञान का उघाड है - यह किस अपेक्षा कहा जाता है उत्तर - उपचरित सद्भूत व्यवहारनय से कहा जाता है । प्र० ३६० - १४ मार्गणाओ मे "योग मार्गणा" बतलाने के पीछे क्या मर्म है ? उत्तर- (१) मन, वचन और काय योग के भेद से योग मार्गणा के तीन प्रकार है । (२) विस्तार से ( अ ) सत्य, असत्य, उभय और अनुभय रुप से मनोयोग चार प्रकार का है । (आ) सत्य, असत्य, उभय और अनुभय रुप से वचन योग चार प्रकार का है । (इ) औदारिक, औदारिक मिश्र, वैक्रियिक वैक्रियिक मिश्र, आहारक, आहारक मिश्र और कार्माण-ये काययोग के सात प्रकार है । इस प्रकार सब मिलकर पन्द्रह प्रकार की योग मार्गणा है । (३) आत्मा के मन वचन काय सम्वन्धी जड योग का सम्बन्ध है । ( ४ ) आत्मा के जड योग सम्बन्धी द्रव्य कर्म का उदय भी है । ( ५ ) आत्मा के मन-वचन- सम्वन्धी प्रदेशो मे कम्पन भी है । (६) परन्तु भगवान आत्मा का अयोग स्वभाव त्रिकाल पडा है । ( ७ ) उसका आश्रय लेकर पर्याय में अयोगीपना प्रगट होवे | यह मर्म है । प्र० ३६१ - ( १ ) आत्मा जड़ मन-वचन-काय सम्बन्धी योग
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy