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________________ ( २३८ ) परन्तु ऐगा है नहीं, योकि आत्मा त अगति स्वभाव वाला है। प्र० ३५३ -आत्मा के चार गति सम्बन्धी भाव होते हैं-यह किस अपेक्षा कहा जाता है ? उत्तर-उगचरित मदभूत व्यवहारनय में कहा जाता है । ० ३५४-१४ मार्गणाओ मे "इन्द्रिय मार्गणा" बतलाने के पीछे क्या ममं है ? उत्तर--(१) एकेन्द्रिय, हीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पचेन्द्रिय रुप पान जड सन्द्रिया है (२) पाच इन्द्रियो सम्बन्धी द्रव्य कर्म का उदय भी है। (:) न्यिो सम्बन्धी जान का उघाड भी है । (८) परन्तु निज भगवान आत्मा न्द्रियो ने रहित अतीन्द्रिय म्वभाव वाला है। (५) उसया आश्रय लेकर पर्याय मे अतीन्द्रिय आनन्द प्रगट होवे। यह मर्म है। प्र० ३५५-आत्मा जड पाच इन्द्रियो वाला है। आत्मा को जड इन्द्रियो सम्बन्धी द्रव्यकर्म का उदय है। यह किस अपेक्षा से कहा जाता है ? उत्तर-अनुचग्नि अगदभूत व्यवहानय गे कहा जाता है, परन्तु ऐसा है नहीं, क्योकि आत्मा तो अतीन्द्रिय स्वभाव वाला है। प्र० ३५६-आत्मा को इन्द्रियो सम्बन्धी ज्ञान का उघाड हैयह किम अपेक्षा मे कहा जाता है ? उत्तर-उपचरित सद्भुत व्यवहारनय से कहा जाता है । प्र० ३५७-१४ मार्गणाओ मे "काय मार्गणा" बतलाने के पीछे क्या मर्म है ? उत्तर-(१) पृथ्वी काय, जनकाय, तेजकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और उसकाय के भेद से छह प्रकार की है। (२) आत्मा के काय सम्बन्धी गरीर है। (३) आत्मा के काय सम्बन्धी द्रव्य कर्म का उदय भी है। (४) आत्मा के काय सम्बन्धी ज्ञान का उघाड भी
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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