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________________ ( २२२ ) प्र० २६२ - जीव त्रस किस अपेक्षा से कहा जाता है ? उत्तर-- अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनय से जीव त्रस कहा जाता है । प्र० २६३ - अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनय से जीव त्रस हैइस वाक्य पर निश्चय व्यवहार के दस प्रश्नोत्तरो को समझाइये ? उत्तर - प्रश्नोत्तर १६८ से २०७ तक के अनुसार स्वय प्रश्नोत्तर बनाकर उत्तर दो । प्र० २६४ - जीवो के तीन प्रकार कौन-कौन से है ? उत्तर - ( १ ) असिद्ध, (२) नो सिद्ध, (३) सिद्ध | प्र० २६५ - असिद्ध मे कौन-कौन जीव आते है ? उत्तर - निगोद से लगाकर चारो गतियो के जीव जब तक निश्चय सम्यग्दर्शन ना हो तब तक वे सब असिद्ध ही है । प्र० २६६ - नो सिद्ध जीव मे कौन-कौन आते है ? उत्तर--नो का अर्थ अल्प है । चौथे गुण स्थान से जीव को 'नो सिद्ध' कहा जाता है । इसलिये अन्तरात्मा ईपत् सिद्ध अर्थात् 'नो सिद्ध' कहा जाता है । प्र० २६७ - सिद्ध कैसे है ? उत्तर - रत्नत्रय प्राप्त सिद्ध है । प्र० २१८ - शुद्ध निश्चयनय से शुद्ध बुद्ध एक स्वभावी होने पर भी जीव स्थावर त्रस क्यो होता है ? उत्तर-अपने शुद्ध-बुद्ध एक स्वभाव को भूलकर इन्द्रियो सुखो मे रुचि पूर्वक आसक्त होकर त्रस स्थावर जीवो का घात करता हैइसलिये त्रस-स्थावर होता है । प्र० २६६ - त्रस स्थावर ना बनना पडे उसके लिये क्या करना चाहिये ? उत्तर - अपने एक शुद्ध वृद्ध स्वभाव का आश्रय लेकर धर्म की
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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