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________________ ( २१७ ) वहा उनका चरण स्पर्श होते ही अपनी शका का निवारण करके पुन अपने स्थान में प्रवेश करता है । प्र० २६२ - केवली समुदघात किसे कहते है ? उ०- केवल ज्ञान उत्पन्न होने के बाद मूल शरीर को छोडे विना दड, कपाट, प्रतर और लोकपूरण क्रिया करते हुए केवली के आत्म प्रदेशो का फैलना । प्र० २६३ - केवली समुद्घात क्सिको होता है ? उ०- (१) केवली समुद्घात सभी केवलियो को नही होता है । (२) किन्तु जिन्हे केवल ज्ञान उत्पन्न होने के बाद छह मास नही हुये हो उन्हे | तथा छह मास के बाद भी चार अघातिया कर्मों मे से आयु कर्म की स्थिती अल्प हो तो उन्ही को नियम से समुद्घात होता है । प्र० २६४ - जीव के प्रदेशों का आकार शरीराकार किस अपेक्षा से कहा जाता है ? उ०- अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनय से कहा जाता है, है नही । प्र० २६५ - जीव के प्रदेशो का आकार शरीराकार है इस वाक्य पर निश्चय व्यवहार के दस प्रश्नोत्तरो को समझाइये ? उ० - प्रश्नोत्तर १६८ से २०७ तक के अनुसार स्वयं प्रश्नोत्तर बनाकर उत्तर दो । प्र० २६६ - जीव समुद्घात करता है यह किस नय से कहा जाता है ? उत्तर- अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनय से कहा जाता है । प्र० २६७ - जीव निश्चयनय से कैसा है ? उत्तर - जीव के जो असख्यात प्रदेश है उनकी वह संख्या सदा उतनी ही रहती है, किसी भी समय एक भी प्रदेश कम-बढ नही होता है । जीव के प्रदेशो की सख्या लोक प्रमाण असख्यात है । इस ल '
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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