SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १७० ) प्र० ६० - व्यवहारनय किसको कहते है ? उत्तर - किमी निमित्त कारण से एक पदार्थ को दूसरे पदार्थ रूप जानने वाले ज्ञान को व्यवहारनय कहते है को घी रहने के निमित्त से घी का घडा कहना । । जैसे- मिट्टी के घडे प्र० ६१ - व्यवहारनय के कितने भेद है ? उत्तर-- दो भेद है-- सद्भूत व्यवहारनय और असद्भूत व्यवहारनय | प्र. ६२ - सद्भूत व्यवहारनय किसको कहते है ? उत्तर - जो एक पदार्थ मे गुण-गुणी को भेद रुप ग्रहण करे - उसे सद्भूत व्यवहारनय कहते है । प्र ० ६३ - सद्भूत व्यवहारनय के कितने भेद है ? उत्तर- दो भेद है। उपचरित सद्भुत व्यवहारनय और अनुपचरित मद्भुत व्यवहारनय । प्र ० ६४ - उपचरित सद्भूत व्यवहारनय किसे कहते है ? उत्तर- जो उपाधि सहित गुण-गुणी को भेदरुप से ग्रहण करे - उसे उपचरित मद्भूत व्यवहारनय कहते है । जैसे ससारी जीव के मतिज्ञानादि पर्याय और नर-नारकादि पर्याये । ? प्र० ६५ - अनुपचरित सद्भूत व्यवहारनय किसे कहते है उत्तर- जो नय निरुपाधिक गुण गुणी को भेद रुप ग्रहण करे - उसे अनुपचरित सद्भुत व्यवहारनय कहते है । जैसे जीव के केवलज्ञानकेवलदर्शन । प्र. ६६ - असद्भूत व्यवहारनय किसे कहते है ? उत्तर - जो मिले हुये भिन्न पदार्थों को अभेदरूप से कथन करे - उसे असद्भुत व्यवहारनय कहते है । जैसे यह शरीर मेरा है । प्र० ६७ - असद्भूत व्यवहारनय के कितने भेद है' उत्तर--दो भेद है । उपचरित असद्भूत व्यवहारनय और ?
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy