SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १६४ ) एकेक और लोक प्रमाण असरयात काल द्रव्य आते है और अजीव तत्व मे इन सब द्रव्यो के साथ मुझ निज आत्मा के अलावा विश्व के समस्त जीव द्रव्य भी आ जाते है। प्र० २६-जीव तत्व और अजीव तत्व प्रयोजनभूत किस प्रकार उत्तर-[१] निज जीवतत्त्व एकमान आश्रय करने योग्य प्रयोजनभूत तत्त्व है [२] अजीवतत्व एकमात्र जानने योग्य प्रयोजनभून तत्त्व है। प्र० २७-निज जीवतत्व का आश्रय लेने से और अजीवतत्त्व को जानने योग्य मानने से क्या लाभ होता है ? उत्तर-दुःख का अभाव और सुख की प्राप्ति होती है अर्थात आश्रव-बन्ध का भागना प्रारम्भ हो जाता है, मवर-निर्जराकी प्राप्ति होकर क्रम से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। प्र० २८-प्रत्येक जीव की सत्ता कितनी-कितनी है ? उत्तर-अस्तित्वादि अनन्त सामान्य गुण और ज्ञान-दर्शनादि अनन्त विशेष गुण । एक व्यजन पर्याय और अनन्त अर्य पर्याय सहित एक जीव की सत्ता है । इसी प्रकार प्रत्येक जीव की सत्ता जानना। प्र० २६-प्रत्येक पुद्गल की सत्ता कितनी-कितनी है ? । उत्तर-अस्तित्वादि अनन्त सामान्य गुण और स्पर्श-रस-गन्धवर्णादि अनन्त विणेप गुण । एक व्यजन पर्याय और अनन्त अर्थ पयोय सहित एक परमाणु की सत्ता है। इसी प्रकार प्रत्येक परमाणु की सत्ता जानना। प्र० ३०-धर्म द्रव्य की सत्ता कितनी है ? उत्तर-अस्तित्वादि अनन्त सामान्य गुण और गति हेतुत्वादि अनन्त विशेष गुण । एक स्वभाव व्यजन पर्याय और अनन्त स्वभाव अर्थ पर्याय सहित धर्म द्रव्य की सत्ता है।
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy