SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १४७ ) सहायता नही चाहता है, वह असहाय स्वभाव को धारण किये हुये है । वह स्वयंभू है, वह एक अखण्ड ज्ञान मूर्ति, पर द्रव्य से भिन्न, शाश्वत, अविनाशी और परमदेव है और इसके अतिरिक्त उत्कृष्ट देव किसे माने ? यदि त्रिकाल मे कोई हो तो माने' नही है । प्र० २६ - मेरा ज्ञान स्वरूप कैसा है ? जिस नही उत्तर-वह अपने स्वभाव को छोड़कर अन्यरूप नही परिणमता है । वह अपने स्वभाव की मर्यादा उसी प्रकार नही छोड़ता प्रकार जल से परिपूर्ण समुद्र सीमा को छोडकर अन्यत्र गमन करता । समुद्र अपनी लहरो की सीमा मे भ्रमण करता है । उसी प्रकार ज्ञानरुपी समुद्र अपनी शुद्ध परिणतिरुप तरगावलि युक्त अपने सहज स्वभाव मे भ्रमण करता है । ऐसी अद्भुत महिमा युक्त मेरा ज्ञान स्वरूप परमदेव, से इस है । प्र० २७ - आत्मा का शरीर के साथ कैसा सम्बन्ध है उत्तर - मेरे और इस शरीर के पडौसी के समान सयोग है । मेरा स्वभाव अन्य प्रकार का है और इसका स्वाभाव अन्य प्रकार का है, मेरा परिणमन और इसका परिणमन भिन्न प्रकार का है । इसलिये यदि यह शरीर अभी गलन रुप परिणमता है तो मैं किस बात का शोक करु और किसका दुख करु ? मै तो तमाशगीर पडौसी की तरह इसका गलन देख रहा हूँ । मेरे इस शरीर से राग-द्वेष नही है । राग-द्वेष इस जगत मे निद्य समझे जाते है और ये परलोक मे भी दुखदाई है । ये राग-द्वेष-मोह ही से उत्पन्न होते है। जिसके मोह नष्ट हो गया उसके राग-द्वेष नष्ट हो गये । मोह के द्वारा ही परद्रव्य मे अहकार और ममकार उत्पन्न होते है । यह द्रव्य है सो मैं हूँ ऐसा भाव तो अह कार है और यह द्रव्य मेरा है ऐसा भाव ममकार है । सामग्री चाहने पर मिलती नही और छोड़ी जाती नही तव यह आत्मा खेद खिन्न होता है । यदि सर्व सामग्री को दूसरो की जाने तो इसके ( सामग्री) आने और जाने का विकल्प क्यो उत्पन्न हो? मेरे तो मोह पहले ही नष्ट हो गया है और मैने शरीरादिक सामग्री को पहले ही पराई जान ली है इसलिये अब इस शरीर के जाने से किस पर
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy