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________________ ( १३८ ) भी किया है ? यदि यही विघ्न हो तो मुनि आदि त्यागी तपस्वी तो इन कार्यो को अगीकार करते है, इसलिये विघ्न का मूल कारण _अज्ञान-रागादि है, इस प्रकार दुख व विघ्न का स्वरूप जानो । प्र० ३४--इच्छा के अभाव का क्या उपाय है ? उत्तर-उसका इलाज सम्यक्दर्शन-ज्ञान-चारित्र है। प्र० ३५-आपने इच्छा के अभाव का उपाय सम्यग्दर्शनादि बताया है उसकी प्राप्ति कैसे हो? उत्तर-(१) केवलज्ञानी के केवलज्ञान को मानने से इच्छा का __ अभाव होकर सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति होती है। (२) निज आत्मा से परद्रव्यो का सर्वथा सम्बन्ध नही है-ऐसा मानने से इच्छा का अभाव होकर सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति होती है। (३) जैसा वस्तु स्वरुप है वैसा माने-जाने तो इच्छा का अभाव होकर सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति होती है । (४) मुझ आत्मा ज्ञायक और लोकालोक व्यवहार से ज्ञेय है - ऐसा मानने से इच्छा का अभाव होकर सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति होती है । (५) पदार्थ इष्ट-अनिष्ट भासित होने से क्रोधादिकषाये होती है जव तत्त्व ज्ञान के अभ्यास से कोई पदार्थ इष्टअनिष्ट न हो तव चारो प्रकार की इच्छा का अभाव होकर स्वयमेव ही धर्म की प्राप्ति हो जाती है। पचास प्रश्नोत्तरों के रुप में “समाधि-मरण का स्वरूप" प्र० १- इस समाधिमरण का स्वरूप किस शास्त्र मे से लिया है ? उत्तर-आचार्य कल्प श्री प० टोडरमल जी के सहपाठी और धर्म प्रभावना मे उत्साह प्रेरक श्रीयुत्त व्र० रायमलजी कृत "ज्ञानानन्द निर्भर निजरस श्रावकचार" नामक ग्रथ (पृ० २२४ से २४३) मे से
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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