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________________ P + १२७ / मिटाना चाहता है, इस प्रकार रोगाभाव इच्छा होने पर भोग इच्छा गौण हो जाती है । प्र० ३१ - अज्ञानी के इच्छा नामक रोग सदा क्यों बना रहता है? उत्तर- एक काल मे एक इच्छा की मुख्यता रहती है और अन्य इच्छा की गौणता हो जाती है, परन्तु मूल मे इच्छा नामक रोग सदा बना रहता है । ? प्र० ३२ - ससार मे दुखी होता हुआ जीव क्यो भ्रमण करता है उत्तर- जिनको नवीन-नवीन विपयो की इच्छा है उन्हें दुख स्व भाव ही से होता है यदि दुख मिट गया हो तो वह नवीन विषयो के लिए व्यापार किसलिये करे ? यही बात श्री प्रवचनसार गाथा ६४ मे कही है कि Bang भावार्थ - जिस प्रकार रोगी को एक औषधि के खाने से आराम हो जाना है तो वह दूसरी औषधि का सेवन किसलिए करे? उसी प्रकार एक विषय सामग्री के प्राप्त होने पर ही दुख मिट जाये तो वह दूसरी विषय सामग्री किसलिए चाहे ? क्योकि इच्छा तो रोग है और इच्छा मिटाने का इलाज विषय सामग्री है । अव एक प्रकार की विषय सामग्री की प्राप्ति से एक प्रकार की इच्छा रुक जाती है परन्तु तृष्णा इच्छा नामक रोग तो अतर मे से नही मिटता है, इसलिये दूसरी अन्य प्रकार की इच्छा और उत्पन्न हो जाती है । इस प्रकार सामग्री मिलाते-मिलाते आयु पूर्ण हो जाती है और इच्छा तो बराबर तब तक निरन्तर बनी रहती है । उसके बाद अन्य पर्याय प्राप्त करते है तब उस पर्याय सम्बन्धी वहा के कार्यो की नवीन इच्छा उत्पन्न होती है । इस प्रकार संसार मे दुखी होता हुआ भ्रमण करता है । प्र० ३३-दुख का मूल कारण कौन है ? उत्तर - अनिष्ट सामग्री के सयोग के कारण क और इष्ट सामग्री के वियोग के कारणो को विघ्न मानते हो, परन्तु आपने कुछ विचार
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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