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________________ $ ( १३३ ) देश जाता है, वहा भूख- तृषा, शीत-उष्णतादि का दुख सहन करता है. स्वय भूखा रहता है और अपना मान मद खोकर भी कार्य करता है, अपना अपमानादिक करवाता है, छलादिक करता है तथा धनादिक खर्च करता है, इस प्रकार मोह इच्छा प्रबल रहने पर कषाय इच्छा गौण रहती है । प्र० १७ - जब मोह इच्छा प्रबल हो तब भोग इच्छा का क्या होता है ? उत्तर - अपने हिस्से का भोजन, वस्त्रादि पुत्रादि, कुटुम्बियो को अच्छे-अच्छे लाकर देता है, अपने को रूखा-सूखा - बासी खाने को मिले तो भी प्रसन्न रहता है। जिस तिस प्रकार अपने भी भागो को जबरदस्ती देकर उनको प्रसन्न रखना चाहता है । इस प्रकार भोग इच्छा की भी गौणता रहती | प्र० १८ - जब मोह इच्छा प्रबल हो तब रोगाभाव इच्छा का क्या होता है ? उत्तर - तथा अपने शरीरादि मे रोगादि कष्ट आने पर भी पुत्रादि के लिए परदेश जाता है । वहा क्षुधा तृषा, शीत-उष्णादि की अनेक बाधाए सहन करता है । स्वयं भूखा रहकर भी उनको भोजनादि खिलाता है । स्वय शीतकाल मे भीगे तथा कठोर बिस्तर पर सोकर भी उनको सूखे तथा कोमल बिस्तरो पर सुलाता है, इस प्रकार रोगाभाव इच्छा गौण रहती है । इस प्रकार मोहइच्छा की प्रबलता रहती है । प्र० १६- जब कषाय इच्छा प्रबल हो तब मोह इच्छा का क्या होता है ? उत्तर - कषाय इच्छा की प्रबलता होने पर पितादि, गुरुजनो को मारने लग जाता है, कुवचन कहता है, नीचे गिरा देता है, पुत्रादि को मारता, लडता है, वेच देता है, अपमानादि करता है, अपने शरीर को भी कष्ट देकर धनादि का संग्रह करता है तथा कषाय के वशीभूत
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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