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________________ ( ११८ ) भगवान आत्मा का आश्रय लेकर वहिरात्मपने का अभाव करके अन्तरात्मा बनकर ज्ञानी की तरह मोक्ष स्वरुप निज आत्मा मे विशेष एकाग्रता करके परमात्मा बन जाता है । प्र० ८६ - जिन-जिनवर और जिनवर वृषभो से कथित, मोक्षतत्व का ज्यो का त्यो श्रद्धान' सुनकर दीर्घ संसारी मिथ्यादृष्टि क्या जानता है और क्या करता है ? उत्तर- जिन-जिनवर और जिनवर वृषभो से कथित 'मोक्षतत्व का ज्यो का त्यो श्रद्धान' का विरोध करता है और चारो गतियो मे घूमता हुआ निगोद चला जाता है । प्र० ८७ - जिन-जिनवर और जिनवर वृषभो से कथित, मोक्ष तत्व का ज्यों का त्यो श्रद्धान, का विशेष स्पष्टीकरण कहा देखें ? उत्तर - जैन सिद्धात प्रवेश रत्नमाला भाग तीसरा पाठ पहिले मे ४१२ प्रश्नोत्तर से ४२६ प्रश्नोत्तर तक देखियेगा । प्र० ८८ - मोक्षमार्ग प्रकाशक नवमे अधिकार मे, 'साततत्वो का ज्यो का त्यो श्रद्धान के विषय मे क्या बताया है ? उत्तर- 'तत्वार्थ श्रद्वान करने का अभिप्राय केवल उनका निश्चय करना मात्र ही नही है । वहा अभिप्राय ऐसा है कि (१) जीव- अजीव को पहिचानकर अपने को तथा पर को जैसा का तैसा माने अर्थात् अपने को आप रूप जानकर पर का अश भी अपने मे न मिलाना और अपना अश भी पर मे न मिलाना । (२) आस्रव को पहिचानकर उसे हेय माने । ( ३ ) तथा बन्ध को पहिचानकर उसे अहित माने । ( ४ ) तथा सवर को पहिचानकर उसे प्रगट करने योग्य उपादेय माने । ( २ ) तथा निर्जरा को पहिचानकर उसे हित का कारण माने । ( ६ ) तथा
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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