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________________ ( ११७ ) भावार्य -आठ कर्मो के सर्वथा नाशपूर्वक आत्मा की जो सम्पूर्ण युद्ध दशा प्रकट होती है उसे मोक्ष कहते है । वह, दगा अविनाशी तथा अनन्त सुखमय है। प्र०-८२-जिन-जिनवर और जिनवर वृषभो ने 'मोक्षतत्व का ज्यो का त्यो श्रद्धान' किसे बताया है ? उत्तर-आत्मा की परिपूर्ण शुद्ध दशा का प्रगट होना मोक्षतत्व है। मोक्ष मे सम्पूर्ण आकुलता का अभाव है और पूर्ण स्वाधीन निगकुल सुख है। प्र० ८३-जिन-जिनवर और जिनवर वृषभो से कथित, 'मोक्षतत्व का ज्यो का त्यो श्रद्धान' से क्या लाभ रहा। .. उत्तर-अनन्त ज्ञानियो का एक मत है-ऐसा पता चल जाता है। प्र० ८४-जिन-जिनवर और जिनवर वृषभो से कथित, 'मोक्षतत्व का ज्यो का त्यो श्रद्धान, सुनकर ज्ञानी क्या जानते है और क्या करते है ? उत्तर-केवली के समान 'मोक्षतत्व का ज्यो का त्यो श्रद्वान करते है और त्रिकाल मोक्षस्वरुप निज भगवान आत्मा मे विशेप एकाग्रता करके परमात्मा बन जाते है। प्र० ८५-जिन-जिनवर और जिनवर वृषभो से कथित, 'मोक्षतत्व का ज्यो का त्यो श्रद्धान,' सुनकर सम्यक्त्व के सन्मुख 'पात्र भव्य मिथ्यादृष्टि जीव क्या जानते है और क्या करते है ? उत्तर-अहो-अहो! जिन-जिनवर और जिनवर वृषभो से कथित, 'मोक्षतत्त्व का ज्यो का त्यो श्रद्धान' महान उपकारी है, मुझे तो इस बात का पता ही नही था-ऐसा विचारकर त्रिकाल मोक्ष स्वरूप निज
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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