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________________ आत्मात्तर-पचपरमानने से क्याचपरमेष्टी माया" ( ४६ ) है कि "शुद्धातम अरु पचगुरु, जग मे सरनो दोय । मोह उदय जिव के वृथा, आनकल्पना होय ।" प्रश्न १२-निमित्तिरूप पंचपरमेष्टी और उपादानरूप अपने भगवान को उत्तम मानने से क्या होता है ? उत्तर-पचपरमेष्टी की आज्ञानुसार अपने उपादानरूप त्रिकाली आत्मा का आश्रय लेवे तो सम्यग्दर्शनादिक की प्राप्ति होकर क्रम से सिद्ध दशा की प्राप्ति होती है। प्रश्न १३-मोक्षमार्ग किसे कहते हैं ? । उत्तर-सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र इन तीनो की एकता ही मोक्षमार्ग है और परवस्तुओं मे, शभभावो मे मोक्षमार्ग नही है। प्रश्न १४-मोक्षमार्ग कितने प्रकार का है ? उत्तर-मोक्षमार्ग तो एक ही प्रकार का है दो प्रकार का नहीं है। परन्तु मोक्षमार्ग का निरूपण दो प्रकार से है। जहाँ वीतरागरूप सच्चे मोक्षमार्ग को मोक्षमार्ग बतलाया है वह तो निश्चय मोक्षमार्ग है। तथा भूमिकानुसार हेयबुद्धि से अस्थिरता सम्बन्धी राग जो मोक्षमार्ग तो नही है परन्तु सच्चे मोक्षमार्ग का निमित्त है व सहचारी है। उसे उपचार से मोक्षमार्ग कहा जाता है, क्योकि निश्चयव्यवहार का चारो अनुयोगो मे ऐसा ही लक्षण है। सच्चा निरूपण निश्चय और उपचार निरूपण व्यवहार है। अत निरूपण की अपेक्षा से दो प्रकार का मोक्षमागं कहना चाहिए। एक निश्चय मोक्षमार्ग है दूसरा व्यवहार मोक्षमार्ग है, इस प्रकार दो प्रकार का मोक्षमागे मानना मिथ्यात्व है। ' [मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ • ५१] प्रश्न १५-निश्चय सम्यग्दर्शन-शान-चारित्र किसे कहते हैं ? . उत्तर-पर से भिन्न स्व का यथार्थ श्रद्धान निश्चय सम्यग्दर्शन है। पर से भिन्न स्व का यथार्थ ज्ञान निश्चय सम्यग्ज्ञान है और पर · से भिन्न स्व का यथार्थ आचरण निश्चय सम्यक्चारित्र है। प्रश्न १६-स्व और पर क्या है ?
SR No.010122
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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