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________________ ( ४५ ) व्यवस्था है । प्रश्न ८ - प्रत्येक द्रव्य कायम रहता हुआ, अपनी-अपनी प्रयोजनभूत किया करता हुआ, निरन्तर बदलता रहता है; इसे स्पष्ट समझाइये ? उत्तर - जीव अनन्त, पुदूगल अनन्तानन्त, धर्म-अधर्म आकाश एक - एक और लोक प्रमाण असख्यात काल द्रव्य हैं । प्रत्येक द्रव्य मे अनन्त - अनन्त गुण हैं। एक-एक गुण मे एक समय मे एक पर्याय का उत्पाद, एक पर्याय का व्यय और गुण कायम रहता है । इस प्रकार प्रत्येक द्रव्य के गुण मे हो चुका है, हो रहा है और होता रहेगा । इस व्यवस्था को रोकने के लिए या हेर-फेर करने को कोई देव - जिनेन्द्र समर्थ नही है, क्योकि यह जिनेन्द्र से कथित पारमेश्वरी व्यवस्था है । प्रश्न - सुख क्या है ? उत्तर - आकुलता ( चिन्ता, क्लेश, झझट) का उत्पन्न ना होना अर्थात्वस्तुस्वरूप की सच्ची समझ सुख है । प्रश्न १० – आकुलता कैसे मिटे तो सुखी हो ? उत्तर - अपने रागादिक दूर हो या आप चाहे उसी प्रकार सर्व द्रव्य परिणमित हो तो आकुलता मिटे । परन्तु सर्व द्रव्य जैसे यह चाहे वैसे ही हो अन्यथा न हो, तब यह निराकुल रहे परन्तु यह तो हो ही नही सकता, क्योकि किसी द्रव्य का परिणमन किसी द्रव्य के आधीन नही है, इसलिए अपने रागादिक दूर होने पर निराकुलता हो, सो यह कार्य बन सकता है, क्योंकि रागादिक भाव आत्मा के स्वभाव भाव तो हैं नही, उपाधिक भाव है । इसलिए यदि पात्र जीव अपने भूतार्थ स्वभाव का आश्रय ले तो आकुलता का अभाव होकर सुखी हो । [ मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ ३०७ ] प्रश्न ११ – विश्व मे उत्तम कौन-कौन हैं ? उत्तर - निमित्तरूप पचरमेष्टी और उपादानरूप त्रिकाली अपना भगवान आत्मा, यह दो विश्व मे उत्तम है । अशरण भावना मे कहा
SR No.010122
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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