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________________ ( १४१ ) अगर बीच मे अटके तो, सर्वार्थ सिद्धि जाओगे। तैतीस सागर एक कोटि, पूरब वियोग पाओगे ॥२॥ फिर नर भव से ही यह गाडी, तुमको ले जायेगी। मुक्ति वधु से मिलन तुम्हारा, निश्चित करवायेगी ॥३॥ भव सागर का सेतु लांघकर, यह गाडी जाती है। जिसने अपना ध्यान लगाया, उसको पहुचाती है ॥४॥ यदि चूके तो फिर अमन्त भव, घर घर पछताओगे। मोक्षपुरी के दर्शन से तुम, वन्चित रह जाओगे ॥५॥ ४६. (राजमल पवैया) देखो खडा है विमान महान, चलो रे भाई सिद्धपुरी ॥टेक।। वायुयान आया है सीट, सुरक्षित अभी करालो। सम्यग्दर्शन ज्ञान चरित्र, तीनो के पास मगालो॥१॥ नर भव से ही यह विमान, सीधा शिवपुर जाता है। जो चूका वह फिर अनन्त, कालो तक पछताता है ॥२॥ रत्नत्रय की बर्थ सभालो, शुद्ध भाव मे जीलो। निज स्वभाव का भोजन लेकर, ज्ञानामृत जल पीलो ॥३॥ निज स्वभाव मे जागरुक जो, उनको पहुचायेगा। सिद्ध शिला सिंहासन तक जा, तुमको बिठलायेगा ॥४॥ मुक्ति भवन मे मोक्ष वधु, वर माला पहनायेगी। सादि अनन्त समाधि मिलेगी, जगती गुण गायेगी ||५|| ५०. (राजमल पवैया) करलो जिनवर की पूजन, आई पवन घडी। आई पावन घडी, मन भावन घडी ।।टेक।। दुर्लभ यह मानव तन पाकर, करलो जिन गुणगान । गुण अनन्त सिद्धो का सुमिरण, करके बनो महान ॥११॥ ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय, मोहनीय अन्तराय । आयु नाम अरू गोत्र वेदनीय, आठो कर्म नशाय ॥२॥
SR No.010122
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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