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________________ ( १२८ ) २८ मेरे मन मन्दिर मे आन पधारो सीमधर भगवान || टेका। भगवन तुम आनन्द समोवर, रूप तुम्हारा महा मनोहर । निशदिन रहे तुम्हारा ध्यान, पधारो सीमन्वर भगवान ॥१॥ सुर किन्नर गणधर गुण गाते, योगी तेरा ध्यान लगाते । गाते प्रभु तेरा यश गान, पधारो सीमन्धर भगवान ॥२॥ जो तेरी शरणागत आया, तूने उसको पार लगाया । तुम हो दयानिधि भगवान, पधारो सीमघर भगवान ॥३॥ भक्तजनो के कष्ट निवारे, आप तिरे हमको भी तारे । कीजे हमको आप समान, पधारो सीमवर भगवान ||४|| आये हैं अव शरण तिहारी, पूजा हो स्वीकार हमारी । तुम हो करुणा दया निधान, पधारो सीमंधर भगवान ||५|| रोम-रोम पर तेज तुम्हारा, भू-मण्डल तुमसे उजियारा । रवि-शि तुम से ज्योतिमान, पधारो सीमन्धर भगवान ॥ ६ ॥ २६. तर्जन्तुम से लागी लगन.. मेरे चैतन्य घन, नित्य निज मे मगन, प्यारे आतम भूल तुम क्यों भटकते निजातम ॥ टेक ॥ ज्ञान दर्शन है लक्षण तुम्हारा, जानना देखना काम प्यारा । शुद्ध ज्ञाता प्रभो, शुद्ध दृष्टा विभो, प्यारे आतम, भूल तुम क्यों भटकते निजातम ||१|| सर्व गतियो को पाउन सेन्यारे, सब विभावो को कर करके टारे । ज्ञान से सर्वगत, पर मे किचित न रत, प्यारे आतम भूल तुम क्यों भटकते निजातम ||२|| अज्ञानी, पर न रहते सदा ही कुज्ञानी । जड न होगे कदा, प्यारे आतम भूल तुम क्यो भटकते निजातम ||३|| पक्ष - व्यवहार से तुम सिद्ध सम हो सदा,
SR No.010122
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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